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नय - रहस्य
है एवं भावनय से पुरुष के समान प्रवर्तमान स्त्री की भाँति वर्तमान पर्यायरूप से प्रतिभासित होता है।
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उक्त चार निक्षेपों सम्बन्धी नय, आत्मा में विद्यमान नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप धर्मों को बताते हैं। इन चारों नयों का स्वरूप निम्न बिन्दुओं के आधार से स्पष्ट समझा जा सकता है
नामनय
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1. आत्मा, आत्मा शब्द से वाच्य होने की योग्यता रखता है। इस योग्यता को नामधर्म कहते हैं और इसे जाननेवाला नय, नामनय है।
2. यदि आत्मा में वाणी द्वारा वाच्य होने की योग्यता न होती तो उसके स्वरूप का कथन करना, ग्रन्थ रचना करना आदि सभी कार्य निरर्थक हो जाते। इसी प्रकार सभी पदार्थों के सम्बन्ध में समझना चाहिए ।
3. यद्यपि आत्मा में वाणी का अभाव है, तथापि वाणी से वाच्य होनेरूप धर्म का अभाव नहीं है।
भगवान-आत्मा परमब्रह्म है और उसे प्रकाशित करनेवाली वाणी शब्दब्रह्म है। कहा भी है
"शुद्धब्रह्म परमात्मा, शब्दब्रह्म जिनवाणी । "
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स्थापनानय
1. जिसप्रकार मूर्ति में भगवान की स्थापना की जाती है, उसी प्रकार किसी भी पुद्गलपिण्ड में आत्मा की स्थापना की जा सकती है।
2. जिस वस्तु में जिस व्यक्ति की स्थापना की जाती है, उस वस्तु को देखने पर वह व्यक्ति ख्याल में आता है - इसप्रकार वह वस्तु स्थापना के द्वारा उस व्यक्ति का ज्ञान करा देती है ।