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________________ सैंतालीस नय भेदों में विभाजित किया जाता है, उसी प्रकार भगवान आत्मा एक अभेद होकर भी ज्ञान, दर्शनादि गुणों एवं मनुष्य, तिर्यंच, नारक, देवादि अथवा बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा आदि पर्यायों के भेदों विभाजित किया जाता है। 327 2. जिसप्रकार बालक, जवान एवं वृद्ध अवस्थाओं में विभाजित होने पर भी वह पुरुष खण्डित नहीं हो जाता, रहता तो वह एक अखण्डित पुरुष ही है; उसी प्रकार ज्ञान दर्शनादि गुणों एवं नरकादि अथवा बहिरात्मादि पर्यायों के द्वारा भेद को प्राप्त होने पर भी भगवान आत्मा अखण्ड ही रहता है। - 3. यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि द्रव्यनय और अविकल्पनय तथा पर्यायनय और विकल्पनय में क्या अन्तर है ? वैसे तो ये दोनों जोड़े एक से ही मालूम पड़ते है, परन्तु गहराई से विचार करने पर ऐसा लगता है कि द्रव्यनय, आत्मा का चिन्मात्र धर्म बता रहा है और अविकल्पनय आत्मा की गुण-पर्यायों में एक अभेदरूप से व्याप्त होने की योग्यता को बता रहा है अर्थात् उसके अभेदरूप धर्म का वाचक है। इसीप्रकार पर्यायनय, आत्मा के ज्ञान दर्शन गुणों को बताता है और विकल्पनय, उसकी पर्यायरूप भेदरूप योग्यता को बताता है। इस प्रकार सुधीजनों द्वारा यह प्रकरण विचारणीय है। (12-15) नामनय, स्थापनानय, द्रव्यनय और भावनय आत्मद्रव्यं, नामनय से नामवाले की भाँति शब्दब्रह्म को स्पर्श करनेवाला है, स्थापनानय से मूर्तिपने की भाँति सर्व पुद्गलों का अवलम्बन करनेवाला है, द्रव्यनय से बालक-सेठ और श्रमणराजा की भाँति अनागत और अतीत पर्यायरूप से प्रतिभासित होता
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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