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________________ 324 नय-रहस्य सकता - ऐसी योग्यता वस्तु में है, जिसे अवक्तव्यनय द्वारा जाना/ कहा जा सकता है। . 3. वस्तु को सर्वथा अवक्तव्य कहना भी स्व-वचन बाधित है अर्थात् अवक्तव्यरूप योग्यता को तो कहा ही जा रहा है, इसलिए वह कथंचित् अवक्तव्य है, सर्वथा अवक्तव्य नहीं। अनेक धर्मों का कथन क्रमशः किया जा सकता है, अतः वस्तु कथंचित् वक्तव्यरूप भी है। . 4. तीर्थंकरों के गुणों का वर्णन अथवा आचार्यों, ज्ञानियों के उपकार का सम्पूर्ण वर्णन असम्भव है - यह कथन भी अवक्तव्यनय का ही प्रयोग है। 5. कभी-कभी कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह दिया जाता है। जैसे, बालक यदि गलती करे तो गम्भीर प्रकृति के माता-पिता उसे डाँटने के बदले मौन रहते हैं। समझदार बालक, उनके मौन से ही उनकी नाराजगी समझ लेता है और अपनी गलती महसूस कर लेता है। यहाँ कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह दिया गया है। 6. प्रारम्भ के तीन भंगों द्वारा वस्तुस्वरूप कहा जा रहा है, अतः वे वक्तव्यपने के वाचक हैं, चौथा भंग अवक्तव्य सम्बन्धी हैं तथा अन्त के तीन भंग वक्तव्य-अवक्तव्य से मिश्रित हैं। 6 (7-8-9) अस्तित्व-अवक्तव्यनय, नास्तित्व-अवक्तव्यनय एवं अस्तित्व-नास्तित्व-अवक्तव्यनय लोहमय, डोरी और धनुष के मध्य स्थित, सन्धानदशा में रहे हुए, लक्ष्योन्मुख एवं लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य स्थित तथा डोरी और धनुष के मध्य नहीं स्थित, सन्धानदशा में रहे हुए तथा सन्धानदशा में नहीं रहे हुए एवं लक्ष्योन्मुख तथा
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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