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________________ 323 सैंतालीस नय को तीसरे भंग द्वारा बताया जाता है। इसलिए वस्तु कथंचित् उभयरूप कही जाती है। ___14. अस्तित्व और नास्तित्व - इन दो को मिला देने से तीसरा भंग बन गया - ऐसा नहीं है। उभयरूप में रहने की योग्यता वाला तीसरा पृथक् धर्म, वस्तु में है, जो तीसरे भंग (नय) द्वारा कहा गया है। इसी प्रकार शेष चार भंग भी वस्तु की उस-उस प्रकार की योग्यतारूप स्वतन्त्र धर्म हैं। मात्र दो धर्मों का विस्तार नहीं, क्योंकि सात प्रकार के धर्म हैं, इसलिए सात प्रकार की जिज्ञासाएँ होती हैं और इसलिए सात भंग हैं। ___ 15. यदि दोनों धर्म एक साथ न रहें तो वस्तु की सत्ता सुरक्षित न रह पाएगी, अतः उभयधर्म को अवश्य स्वीकार करना चाहिए। (6) अवक्तव्यनय लोहमय तथा अलोहमय, डोरी व धनुष के मध्य में स्थित तथा डोरी व धनुष के मध्य में नहीं स्थित, संधान-अवस्था में रहे हुए तथा सन्धान-अवस्था में न रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख - ऐसे उसी बाण की भाँति आत्मद्रव्य, अवक्तव्यनय से युगपत् स्व-पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से अवक्तव्य है। अवक्तव्यनय का स्वरूप निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है - ____ 1. सभी धर्मों अथवा अनेक का कथन एक साथ नहीं किया जा सकता - इस अपेक्षा से वस्तु अवक्तव्यरूप है। 2. यद्यपि इसमें वाणी की कमजोरी होने से वाणी की अपेक्षा आती है, परन्तु वस्तु धर्मों का सम्पूर्णरूप से कथन नहीं किया जा
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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