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________________ नय - रहस्य 9. आज प्रवचन में अमुक व्यक्ति नहीं आया, इस प्रसंग में द्रव्य की नास्ति है। मैं जयपुर नहीं जा रहा हूँ, इस प्रसंग में क्षेत्र की नास्ति है। मैं कल नहीं आऊँगा, इस प्रसंग में काल की नास्ति है और मुझे भूख नहीं है, इस प्रसंग में भाव की नास्ति है । इसप्रकार के अनेक प्रयोग हमारे लोकजीवन में व्याप्त हैं । कोई बड़ा नेता, किसी सम्मेलन में नहीं गया, इसमें भी बहुत से संकेत समझ लिये जाते हैं; अतः अस्तिनास्ति दोनों पक्षों से वस्तुस्वरूप समझने में आता है। 322 10. जो व्यक्ति, इन अस्ति नास्ति धर्मों को यथार्थ जानता है, वही व्यक्ति जगत् के सभी पदार्थों की परस्पर भिन्नता को भली-भाँति समझ सकता है। इनके जानने पर ही परपदार्थों से एकत्वबुद्धि टूटती है, पर से लाभ-हानि मानने की मिथ्या मान्यता छूटती है। इस रहस्य को समझने का सच्चा फल तो यही है कि समस्त परपदार्थों के आश्रय की रुचि समाप्त होकर एक निज भगवान आत्मा की ही रुचि जागृत हो जाए। 11. कार्योत्पत्ति में निमित्त की उपस्थिति अनिवार्य है और कई प्रसंगों में अभावरूप निमित्त भी होते हैं । समुद्र की निस्तरंग अवस्था में हवा का न चलना तथा आत्मा में रागादि की अनुत्पत्ति में द्रव्यकर्म का उदय न होना आदि अभावरूप निमित्त के उदाहरण हैं । इन प्रसंगों में भी नास्तित्वधर्म की महत्ता झलकती है। 12. आचार्य समन्तभद्र ने आप्तमीमांसा में अभावैकान्त का खण्डन करके अस्तित्वधर्म की और भावैकान्त का खण्डन करके नास्तित्वधर्म की महत्ता बताई है। 13. अस्तित्व-नास्तित्वधर्म की व्याख्या दो तरह से की जाती है। (अ) दोनों धर्म का क्रमशः कथन किया जा सकता है। (ब) दोनों विरोधी धर्म वस्तु में अविरोधरूप से एक साथ रहते हैं ऐसी योग्यता -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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