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सैंतालीस नय
321 2. स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से ही वस्तु की सत्ता या अस्तित्व है।
3. पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से वस्तु का अस्तित्व नहीं है अर्थात् न + अस्तित्व है। ____4. अतः वस्तु, स्वरूप से है, पररूप से नहीं है। आत्मा भी अपने चैतन्यस्वरूप से है शरीरादिरूप से नहीं है। शरीरादि परद्रव्यों की अपेक्षा आत्मा का नास्तित्व है अर्थात् अस्तित्व नहीं है।
5. नास्तित्वधर्म को समझने में पर का सहारा लेना पड़ता है, परन्तु आत्मा के नास्तित्वधर्म की सत्ता आत्मा में आत्मा से ही है, शरीर में या शरीर से नहीं। आत्मा का शरीररूप न होने की योग्यता अथवा आत्मा का अस्तित्व, शरीर के कारण न होने की योग्यता ही नास्तित्वधर्म का स्वरूप है। ____6. प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व अपने चतुष्टय से है, पर-चतुष्टय से नहीं; अतः प्रयोग करते समय सावधानी रखी जानी चाहिए कि किसकी किसमें नास्ति कही जा रही है। शरीर की अपेक्षा आत्मा का नास्तित्व है - यह आत्मा का नास्तित्वधर्म है और आत्मा की अपेक्षा शरीर का नास्तित्व होना - यह शरीर के नास्तित्वधर्म की योग्यता है।
7. अस्तित्वधर्म में वस्तु की सत्ता का बोध होता है और नास्तित्वधर्म में वस्तु की असत्ता अर्थात् पर से भिन्नता, स्वतन्त्रता
और पर से अत्यन्ताभाव की सिद्धि होती है। ____8. लौकिक जीवन में भी नास्तित्व की अनुभूति के प्रसंग बनते हैं। किसी विशिष्ट कार्यक्रम में किसी विशिष्ट व्यक्ति का न होना, बहुत कुछ कह देता है। जनसामान्य में भी अनेक प्रकार की चर्चाएँ होने लगती हैं।