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स. द्रव्यनय का विषय योग्यता रूप अभेदधर्म ।
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नय - रहस्य
समस्त भेदों में व्याप्त रहने की एक
द. अविकल्पनय का विषय - 47 नयों में 11वें अविकल्पनय का विषयभूत अविकल्पधर्म भी वस्तु के अखण्ड स्वभाव को बताता है। अतः 'अभेद' शब्द के द्वारा कहाँ कौन-सा वाच्य है, इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
(3-4-5) अस्तित्वनय, नास्तित्वनय एवं अस्तित्व - नास्तित्वनय
वह आत्मद्रव्य, अस्तित्वनय से लोहमय, डोरी और धनुष के मध्य में स्थित, सन्धानदशा में रहे हुए, लक्ष्योन्मुख बाण की भाँति स्वद्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा अस्तित्ववाला है; नास्तित्वनय से अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य में नहीं स्थित, सन्धानदशा में न रहे हुए, अलक्ष्योन्मुख उसी बाण की भाँति परद्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा नास्तित्ववाला है एवं अस्तित्व - नास्तित्वनय से लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य में स्थित तथा डोरी और धनुष में नहीं स्थित, संधान - अवस्था में रहे हुए और संधान-अवस्था में नहीं रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख उसी बाण की भाँति क्रमशः स्व-पर- द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा अस्तित्व - नास्तित्ववाला है।
इस सम्बन्ध में निम्न बिन्दुओं के आधार पर विचार किया जा सकता है
1. आत्मा तथा समस्त वस्तुओं के अस्तित्व और नास्तित्व को यहाँ द्रव्य-क्षेत्र-काल- भाव के आधार पर समझाया गया है।