________________
319
सैंतालीस नय
होते हैं, परन्तु उन्हें गौण करके मात्र वस्त्र को जानना, द्रव्यनय है तथा उसके रंग-रूपादि भेदों को जानना, पर्यायनय है; उसीप्रकार आत्मा में मात्र चित्स्वभाव को जानना, द्रव्यनय है तथा ज्ञान - दर्शनादि भेदों को जानना पर्यायनय है।
2. आत्मा में द्रव्य नाम का एक धर्म है, जिसका स्वरूप चैतन्य मात्र है अथवा द्रव्यधर्म की अपेक्षा आत्मा का चैतन्यस्वभाव, उसके सम्पूर्ण गुण - पर्यायों में व्याप्त है और पर्यायधर्म की अपेक्षा उसमें ज्ञान- दर्शनादि भेदरूप रहने की योग्यता है ।
3. द्रव्यार्थिकनय-पर्यायार्थिकनय और द्रव्यनय-पर्यायनय में अन्तर है। द्रव्यार्थिकनय का विषय, सम्पूर्ण सामान्य स्वभावरूप अभेद है, जबकि द्रव्यनय का विषय, अनन्तधर्मों में से एक धर्म है। इसीप्रकार पर्यायार्थिकनय का विषय, वस्तु का विशेष स्वभाव है, जबकि पर्यायनय का विषय भेदरूप रहने की विशिष्ट योग्यता है । द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकनय के अन्तर्गत प्रमाण की विषयभूतं सम्पूर्ण वस्तु है, जबकि द्रव्यनय और पर्यायनय का विषय वस्तु के अनन्त धर्मों में से मात्र एक - एक धर्म है।
ये दोनों नय, वस्तु की अभेद तथा भेदरूप एक-एक योग्यता को बताते हैं। जरा ध्यान दीजिए कि 'अभेद' शब्द प्रायः अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। उनमें से कुछ प्रयोग निम्न प्रकार हैं
अ. अभेद अनुभूति विकल्प नहीं होता है अनुभूति कहते हैं।
-
-
जहाँ ध्यान-ध्याता- ध्येय का भी ऐसी निर्विकल्प अनुभूति को अभेद
-
ब. द्रव्यार्थिक या शुद्धनय का विषय - जिसमें वस्तु के समस्त भेदों को गौण करके अभेद वस्तु को विषय बनाया जाता है।