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स्वभाव, गुण, शक्ति और धर्म
47 धर्मों को जानने से पूर्व स्वभाव, गुण, शक्ति और धर्म के स्वरूप का विचार करना आवश्यक है। इसकी चर्चा इसी पुस्तक के अध्याय तेरह के अन्त में की गई है, अतः पाठकों से अनुरोध है कि वे उस प्रकरण को एक बार अवश्य पढ़ लें। उसका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है.
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स्वभाव
धर्म- तीनों के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
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नय - रहस्य
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स्वभाव का व्यापक अर्थ है, वह गुण, शक्ति और
गुण द्रव्य की त्रैकालिक विशेषताओं को गुण कहते हैं।
शक्ति - द्रव्य के प्रत्येक गुण में उसके स्वरूप के अनुसार कार्य की उत्कृष्टतम सामर्थ्य को शक्ति कहते हैं।
धर्म –— प्रत्येक वस्तु में परस्पर विरोधी स्वभावों को मुख्यतः धर्म कहा जाता है। यहाँ 47 नयों के प्रकरण में प्रत्येक नय के विषय को धर्म कहा गया है। इसके अन्तर्गत विकारी- अविकारी सभी अवस्थाओं से सम्बन्धित योग्यताओं का समावेश किया गया है।
अब 47 नयों के स्वरूप पर संक्षेप में विचार किया जा रहा है -
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(1-2)
द्रव्यनय और पर्यायनय
वह अनन्तधर्मात्मक आत्मद्रव्य, द्रव्यनय से पटमात्र की भाँति चिन्मात्र है और पर्यायनय से तन्तुमात्र की भाँति दर्शनज्ञानादिमात्र है ।
इस सम्बन्ध में निम्न बिन्दुओं के आधार पर विचार किया जा सकता है
1. जैसे, वस्त्र में अनेक ताने-बाने, रंग-रूप तथा आकारादि