SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 314 नय-रहस्य जानकारी के लिए तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ की सर्वार्थसिद्धि आदि वृत्तियों (टीकाओं) और राजवार्तिक आदि वार्तिकों (भाष्यों) का गहराई से अध्ययन करके आत्महित में प्रयत्नशील होना ही श्रेयस्कर है। अभ्यास-प्रश्न 1. नैगमादि सप्तनयों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए लौकिक जीवन में इनका प्रयोग किसप्रकार पाया जाता है - स्पष्ट कीजिए। : 2. प्रत्येक नय की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 3. किसी एक उदाहरण पर सातों नयों को घटाइये। 4. सात नयों को द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक में विभाजित कीजिए। 5. सात नयों को शब्द-अर्थ-ज्ञाननय में घटाइये। स्याद्वाद-लक्ष्मी महल के, वश में हए जो वर्तते। उन नय समूहों से लखें, अथवा लखें प्रमाण से।। तो भी अनन्तानन्त धर्म-स्वरूप अपने आत्म को। वे शुद्ध चेतनमात्र को ही, देखते निज में अहो।। - प्रवचनसार कलश, 19 स्याद्वाद से जीवित जिन-सिद्धान्त पद्धति हो जयवन्त। दुर्निवार नय-पुंज विरोध-विनाशक औषधि को वन्दन।। - पंचास्तिकाय, कलश 2
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy