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सैंतालीस नय
नयों के अनेक प्रकार के भेद - प्रभेदों के समूह के अन्तर्गत निश्चय-व्यवहार, द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक, शब्द - अर्थ, ज्ञाननय तथा नैगमादि सप्त नयों की चर्चा तो हो चुकी है।
आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने प्रवचनसार के परिशिष्ट में आत्मा में विद्यमान अनन्त धर्मों में से 47 धर्मों का ज्ञान कराने वाले 47 नयों का वर्णन किया हैं। इन 47 नयों पर पूज्य गुरुदेवश्री ने विस्तृत विवेचन किया है, जो नय - प्रज्ञापन ग्रन्थ में संकलित है। परमभावप्रकाशक नयचक्र में भी इन 47 नयों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है; अतः यहाँ इन नयों के मात्र प्रमुख बिन्दुओं पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है।
आत्मा की 47 शक्तियाँ तथा आत्मा की अन्य विशेषताओं की भाँति 47 नय भी आत्मा का स्वरूप जानने के लिए तथा उसे प्राप्त करने अर्थात् स्वानुभूति के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। प्रवचनसार परिशिष्ट के प्रारम्भ में ही आचार्यदेव स्वयं कहते हैं -
यह आत्मा कौन है और कैसे प्राप्त किया जाता है ? ऐसा यदि प्रश्न किया जाए तो इसका उत्तर पहले ही कहा जा चुका है, तथापि यहाँ पुनः कहते हैं प्रथम तो आत्मा वास्तव में चैतन्य - सामान्य से व्याप्त अनन्त धर्मों का अधिष्ठाता एक द्रव्य है, क्योंकि वह अनन्त धर्मों में व्याप्त होने वाले जो अनन्त नय हैं, उनमें व्याप्त
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