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________________ नैगमादि सप्त नय 309 में एक वस्तु के वाचक अनेक शब्द लिखने की परम्परा इसी 'शब्दनय' पर आश्रित है। यहाँ यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि लोक में शब्दारूढ़ की अपेक्षा अर्थारूढ़ अधिक बलवान् है। जैसे, लोक में भी 'गो' शब्द के व्युत्पत्ति अर्थ की अपेक्षा अर्थारूढ़ से किया जानेवाला प्रयोग अधिक बलवान है। गच्छतीति गो अर्थात् जो गमन करे, उसे गाय कहते हैं। यह बात शब्दारूढ़ नय से सत्य होने पर भी कभी किसी चलते हुए व्यक्ति या महिला को गाय कहकर तो देखिए? अतः दुनिया इस शब्दारूढ़नय को स्वीकार नहीं करेगी। इसीप्रकार जिनागम का अर्थ करने में भी सावधानी रखने की अत्यन्त आवश्यकता है। केवल ज्ञान शब्द का अर्थ मात्र ज्ञान होता है, परन्तु जिनागम में क्षायिकज्ञान के लिए केवलज्ञान शब्द का प्रयोग अधिक प्रचलित है। अतः किस शब्द का किस प्रसंग में क्या अर्थ है - इस तथ्य पर गम्भीरता से विचार करके, शब्द-प्रयोग करना आवश्यक है। एवंभूतनय शब्दनय एवं समभिरूढ़नय से अधिक सूक्ष्म प्रयोग, एवंभूतनय का है। शब्दनय, व्याकरण-सम्मत अपवादों को तो अस्वीकार कर देता है, परन्तु एकार्थवाची शब्दों को स्वीकार कर लेता है। लेकिन समभिरूढ़नय, एकार्थवाची शब्दों के भी भिन्न-भिन्न वाच्य स्वीकार करता है; जबकि एवंभूतनय, उस क्रिया में संलग्न पदार्थ को मात्र उसी समय उस शब्द से सम्बोधित करने की अनुमति देता है। जैसे, इस नय से देवराज पुरन्दर को इन्दन क्रिया करते समय ही इन्द्र कहा जाता है, पुर या नगर का दारण या नाश करते (पुरन्दर) समय अथवा सामर्थ्य (शक्र) का प्रदर्शन करते समय नहीं। इस नय से डॉक्टर को हॉस्पिटल में मरीज का इलाज करते समय ही डॉक्टर कहा जाता है, घर में नहीं।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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