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________________ 307 नैगमादि सप्त नय तीन ही होते हैं। 'इन्द्र' का अर्थ आज्ञा व ऐश्वर्यवान् है, 'शक्र' का अर्थ समर्थ है और पुरन्दर' का अर्थ नगरों का विभाजन करनेवाला है। इसीप्रकार सर्वत्र पर्यायवाची शब्दों के सम्बन्ध में जानना चाहिए। नारायण श्रीकृष्ण के लोक में बहुत-से नाम प्रचलित हैं। यथा - मुरलीधर, मनमोहन, मुरारी, गिरधर, गोपाल इत्यादि। यद्यपि शब्दनय के अनुसार ये सब कृष्ण के पर्यायवाची हैं, तथापि समभिरूढ़नय से प्रत्येक शब्द का अलग-अलग अर्थ है - जो कृष्ण की ही भिन्न-भिन्न विशेषताओं (लीलाओं) को बताता है। - इन्द्र द्वारा 1008 नामों से जिनेन्द्र भगवान की स्तुति की जाती है। ये सभी नाम, शब्दनय से जिनेन्द्र के पर्यायवाची हैं, परन्तु समभिरूढ़नय से प्रत्येक नाम, अपने अनुरूप अलग-अलग गुणों (विशेषताओं) का वाचक है। इस सन्दर्भ पर भक्तामर स्तोत्र में समागत निम्न काव्य ध्यान देने योग्य है - बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्, त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रय-शंकरत्वात्। धाताऽसि धीर! शिवमार्ग-विधेर्विधानात्, व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोऽसि।। ज्ञान पूज्य है अमर आपका, इसीलिए कहलाते बुद्ध। भुवनत्रय के सुख-संवर्धक, अतः तुम्हीं शंकर हो शुद्ध।। मोक्षमार्ग के आद्य प्रवर्तक, अतः विधाता कहें गणेश। तुम-सम अवनी पर पुरुषोत्तम, और कौन होगा? अखिलेश!। यहाँ विशेष ध्यानाकर्षक बात यह है कि व्युत्पत्ति अर्थ के आधार पर पर्यायवाची शब्दों के अनेक अर्थ स्वीकार करने का यह आशय कदापि नहीं है कि उन शब्दों के वाच्यभूत पदार्थ भी भिन्न-भिन्न हों। प्रत्येक शब्द, उसी वाच्यार्थ की भिन्न-भिन्न विशेषताओं को बताता
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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