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नैगमादि सप्त नय
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सम्पूर्ण जिनागम में जहाँ भी इन नयों की व्याख्या की गई है, वहाँ संस्कृत-व्याकरण के आधार पर ही इन दोषों को समझाया गया है। संस्कृत भाषा से अपरिचित लोगों को इन प्रयोगों का भाव समझ में नहीं आता, इसलिए इन्हें वर्तमान में प्रचलित भाषा के सन्दर्भ में समझना आवश्यक है; अतः यहाँ हिन्दी भाषा के गलत और सही प्रयोगों को उदाहरण बनाकर लिंग, संख्या आदि सम्बन्धी दोषों को स्पष्ट किया जा रहा है। प्रायः अहिन्दी भाषी लोगों द्वारा हिन्दी बोलते समय ऐसे दूषित प्रयोग किये जाते हैं।
लिंग - व्यभिचार स्त्रीलिंग या पुल्लिंग शब्दों के साथ गलत वाक्य-प्रयोग लिंग- व्यभिचार कहलाता है। आज हमारा बेटी आ रहा है । यहाँ बेटी स्त्रीलिंग है, अतः 'हमारा' के स्थान पर 'हमारी' और 'आ रहा है' के स्थान पर 'आ रही है' होना चाहिए, इसलिए आज हमारी बेटी आ रही है - यह वाक्य सही है।
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संख्या-व्यभिचार - एकवचन या बहुवचन सम्बन्धी शब्दों के साथ अनुचित वाक्य-प्रयोग संख्या - व्यभिचार कहलाता है। हम आ रहा हूँ - इस वाक्य में या तो हम के स्थान पर मैं शब्द का प्रयोग होना चाहिए अथवा आ रहा हूँ के स्थान पर आ रहे हैं अर्थात् बहुवचन का प्रयोग होना चाहिए, अतः मैं आ रहा हूँ या हम आ रहे हैं - यह वाक्य - प्रयोग सही है।
साधन-व्यभिचार - कर्ता, कर्म आदि कारकों के अनुचित प्रयोगों को साधन - व्यभिचार कहते हैं। रमेश ने सुरेश को फोन किया और यदि सुरेश की जगह दूसरे व्यक्ति ने फोन उठाया तो वह सुरेश से प्रायः यही कहेगा कि आपका फोन आया है, जबकि रमेश का फोन सुरेश के लिए आया है, अतः सुरेश से यह कहना कि आपका फोन