SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नैगमादि सप्त नय 301 .. उसमें समाहित सूक्ष्म कार्यों को भी सम्पन्न करना ही पड़ता है, उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता। भोजन बनाना/करना, व्यापार करना अथवा मकान बनाना आदि स्थूल कार्यों के बारे में ही कहने-सुनने का व्यवहार जगत् में सम्भव है। इसमें गर्भित अति सूक्ष्म बातों के बारे में कहना न तो सम्भव है और न व्यावहारिक, परन्तु इन कार्यों को करने में इनके प्रत्येक सूक्ष्म अंशों को भी सम्पन्न करना पड़ता है। यही स्थिति, गति आदि क्रियाओं में है। कोई व्यक्ति, एक नगर से दूसरे नगर में जाने के लिए इतना ही कहेगा कि मुझे दिल्ली से मुम्बई जाना है। वह चाहे जिस साधन से या जिस गति से जाए, इन दोनों नगरों के बीच की एक-एक इंच दूरी उसे पार करनी ही पड़ेगी। काल के प्रयोग में भी यही प्रक्रिया है। कोई व्यक्ति एक बार में ही कह सकता है कि मैं साठ वर्ष का हूँ, परन्तु 60 वर्ष का होने में उसने प्रत्येक वर्ष के 365 दिन, प्रत्येक दिन के 24 घण्टे तथा उसमें समाहित प्रत्येक घण्टे, मिनिट और सेकेण्ड व्यतीत किये हैं। इसप्रकार एक समय, एक परमाणु, एक प्रदेश आदि सूक्ष्म इकाइयाँ यद्यपि छद्मस्थ के प्रत्यक्ष ज्ञान-गम्य नहीं हैं, तथापि आज के वैज्ञानिक अनुसन्धानों में एक सेकेण्ड और मिलीमीटर के भी हजारों भागों की गणना होती है। . तात्पर्य यह है कि कथन स्थूल होने पर भी कार्य सम्पन्न होने में यथासम्भव सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय के विषय का प्रयोग होता ही है। शब्दनय ज्ञाननय से सम्बन्धित नैगमनय और अर्थनय से सम्बन्धित नैगम, संग्रह, व्यवहार एवं ऋजुसूत्रनय के स्वरूप पर विचारोपरान्त अब शब्दनय की चर्चा का क्रम है। तत्त्वार्थ सूत्र में उल्लिखित सात नयों में भाषा के प्रयोग से
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy