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नय - रहस्य
दो भेदों का उल्लेख इसप्रकार किया गया है जो द्रव्य में एक समयवर्ती अध्रुव पर्याय को ग्रहण करता है, उसे सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय कहते हैं । जैसे, सभी शब्द क्षणिक हैं और जो अपनी स्थिति पर्यन्त रहनेवाली मनुष्य आदि पर्याय को उतने समय तक मनुष्य पर्यायरूप से ग्रहण करता है, वह स्थूल ऋजुसूत्रनय है ।
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सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय, एक समयवर्ती अर्थपर्याय को अपना विषय बनाता है, जिसे शुद्ध ऋजुसूत्रनय भी कहते हैं और स्थूल ऋजुसूत्रनय अनेक समयवर्ती व्यंजनपर्याय को अपना विषय बनाता है, जिसे अशुद्ध ऋजुसूत्रनय भी कहते हैं।
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यहाँ यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि एक समयवर्ती पर्याय हमारे क्षयोपशम ज्ञान का विषय नहीं बन सकती, उसे अनुमान अथवा आगम प्रमाण से जाना जा सकता है, उसके माध्यम से जगत् में कुछ व्यवहार सम्भव नहीं है। एक समयवर्ती पर्यायें धारावाहीरूप से असंख्य समय तक होती रहें, तभी छद्मस्थ जीवों के ज्ञान का विषय बनती हैं। यही कारण है कि स्थूल या अशुद्ध ऋजुसूत्रनय का व्यवहार, अनेक पर्यायों के समूहरूप व्यंजन पर्यायों के आधार से ही चलता है। जिनागम में इन्हें भी पर्याय संज्ञा दी गई है।
यद्यपि वास्तविक वर्तमान एक समय का ही होता है तथा दिन, माह, वर्ष, शताब्दी आदि स्थूल कालसूचक इकाइयों में अनेक समयों को संगृहीत करके उन्हें भी वर्तमान कहने का व्यवहार लोक में तो प्रसिद्ध है ही, जिनागम में भी मान्य है। ऋषभादि चौबीस तीर्थंकर हजारों-लाखों वर्षों पहले सिद्ध हो चुके हैं, परन्तु आज भी उन्हें वर्तमान चौबीसी के तीर्थंकर कहे जाने का व्यवहार है।
यह बात भी विचारणीय है कि कहने-सुनने में भले ही सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय का प्रयोग न होता हो, परन्तु स्थूल कार्यों की सम्पन्नता में