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नैगमादि सप्त नय उनमें तथा शुद्ध संग्रहनय में क्या अन्तर है?
उत्तर - शुद्ध संग्रहनय में अवान्तर सत्ताओं का सर्वथा निषेध नहीं है, अतः यह नय, सम्यक्-एकान्त है, जबकि एकान्त अद्वैतवादी उनका सर्वथा निषेध करने से मिथ्या एकान्ती हैं। सर्वार्थसिद्धि वचनिका, अध्याय 1, सूत्र 33 की टीका में इन्हें संग्रहाभास या कुनय कहते हुए कहा है कि सांख्यमती एकान्त से प्रधान को, व्याकरणवाले शब्दाद्वैत को, वेदान्ती पुरुषाद्वैत को और बौद्धमतवाले संवेदनाद्वैत को मानते हैं। ये सब नय, मिथ्या-एकान्तवादी हैं।
इसप्रकार संग्रहनय का प्रयोग हमारे जीवन में अत्यन्त गहराई से व्याप्त है।
व्यवहारनय कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 273 के अनुसार - जो नय, संग्रहनय के द्वारा अभेदरूप से गृहीत वस्तुओं का परमाणुपर्यन्त भेद करता है, वह व्यवहारनय है। - सर्वार्थसिद्धि वचनिका के अनुसार - संग्रहनय से ग्रहण किये गये वस्तु-समूह का विधिपूर्वक भेद, व्यवहारनय करता है। कोई पूछता है विधि क्या है? उससे कहते हैं - संग्रहनय से ग्रहण किये गये पदार्थों से शुरू करके, उसके विशेषों के आधार पर भेद करना ही विधि है।
द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र, गाथा 209 के अनुसार - जो संग्रहनय के द्वारा गृहीत शुद्ध अथवा अशुद्ध अर्थ का भेद करता है, वह व्यवहारनय है। अशुद्ध अर्थ का भेद करनेवाला अशुद्ध व्यवहारनय और शुद्ध अर्थ का भेद करनेवाला शुद्ध व्यवहारनय है।
महासत्ता, शुद्ध संग्रहनय का विषय है और उसमें जातिवाचक 1. अध्याय 1, सूत्र 33 की टीका