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________________ 294 नय - रहस्य के पाँच असाधारण भावों का वर्गीकरण तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय 2, सूत्र 1 में औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक और पारिणामिक के रूप में किया गया है। एक ही प्रकार के अनेक भावों का संग्रह करके ही यह वर्गीकरण सम्भव है। हमारे लौकिक जीवन में भी संग्रहनय का प्रयोग अनिवार्य है। परिवार, समाज, राष्ट्र, कक्षा, सेना, विभिन्न संस्थाएँ, ग्राम-सभा, नगर-निगम, विधान-सभा, संसद, सरकार आदि सभी समूह, संग्रहनय प्रयोग हैं, जिनके बिना हम अपने लौकिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। उपर्युक्त समूह तो व्यवस्था के आधार पर करना आवश्यक हैं; परन्तु संस्कारों, विचारों, रीति-रिवाज, रहन-सहन, भाषा आदि के आधार पर भी यह मानव-समाज हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, दिगम्बर, श्वेताम्बर, गुजराती, मराठी, हिन्दी आदि अनेक समुदायों में विभक्त है। संकीर्ण विचारधारा के आधार पर स्थापित ये समुदाय राग-द्वेष की लम्बी परम्परा के कारण बन रहे हैं । यहाँ मात्र संग्रहनय के स्वरूप और विभिन्न प्रयोगों का प्रकरण है, अतः हम राग-द्वेष सम्बन्धी प्रकरण का विस्तार नहीं कर रहे हैं। प्रश्न- शुद्ध संग्रहनय का विषय भी सत् मात्र है और दर्शनोपयोग भी सत्ता मात्र को ग्रहण करता है तो इन दोनों में क्या अन्तर है ? को उत्तर शुद्ध संग्रहनय, अवान्तर सत्ता को गौण करके महासत्ता मुख्य करके जानता है तथा उसमें सत्ता के स्वरूप का आकार भी ज्ञान में बनता है, जबकि दर्शनोपयोग निराकार होता है तथा उसमें मुख्य - गौण करने की प्रक्रिया नहीं होती है। प्रश्न एकान्तं अद्वैतवादी भी महासत्ता को स्वीकार करते हैं, - -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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