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नैगमादि सप्त नय
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में से एक को प्रधान करता है और एक को गौण करता है - ऐसा विशेष अन्तर जानना चाहिए ।
उक्त कथन से यह स्पष्ट होता है कि अर्थनय की अपेक्षा नैगमनय तीन तरह से द्रव्य-गुण- पर्यायात्मक वस्तु को विषय बनाता है .
(1) दो धर्मियों में एकता का संकल्प (2) दो धर्मों में एकता का संकल्प और (3) धर्म व धर्मी में एकता का संकल्प | इन्हें क्रमशः 1. द्रव्य नैगमनय, 2. पर्याय नैगमनय तथा 3. द्रव्य - पर्याय नैगमनय भी कहा जाता है। इन तीन नयों के क्रमशः 2, 3 और 4 भेद होते हैं।
निम्नलिखित तालिका में इन नौ भेदों के नाम दिये जा रहे हैं। इनका विस्तृत विवेचन, श्लोकवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि वचनिका, अध्याय 1 सूत्र 33 की टीका तथा द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र, परिशिष्ट 2, नय - विवरण, पृष्ठ 238 - 245 से जानना चाहिए ।
अ. द्रव्य नैगमनय
ब. पर्याय नैगमनय
स. द्रव्य - पर्याय नैगमनय
1. शुद्धद्रव्य नैगमनय
2. अशुद्धद्रव्य नैगमनय
3. अर्थपर्याय नैगमनय
4. व्यंजनपर्याय नैगमनय
5. अर्थ - व्यंजनपर्याय नैगमनय
6. शुद्धद्रव्य- अर्थपर्याय नैगमनय 7. अशुद्धद्रव्य - अर्थपर्याय नैगमनय 8. शुद्धद्रव्य - व्यंजनपर्याय नैगमनय
9. अशुद्धद्रव्य - व्यंजनपर्याय नैगमनय
इसप्रकार नैगमनय के ज्ञाननय की अपेक्षा 3 तथा अर्थनय की अपेक्षा 9, कुल 12 भेद जानना चाहिए। आगम के आधार पर इनके