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________________ नैगमादि सप्त नय 289 परिभाषा में प्रयुक्त ‘अनिष्पन्न' शब्द को भूत नैगमनय में घटित करते समय भूतकालीन कार्य निष्पन्न हो चुका है, वर्तमान में निष्पन्न हो नहीं रहा है - इस अपेक्षा उसे अनिष्पन्न कहा गया है। 2. वर्तमान नैगमनय - जो प्रारम्भ की गई पकाने आदि क्रिया को लोगों के पूछने पर सिद्ध या निष्पन्न कहता है, वह वर्तमान नैगमनय है। . भोजन बनाने की तैयारी करते हुए अर्थात् ईंधन, जल आदि का संग्रह करते हुए अथवा दाल-चावल आदि धोते हुए व्यक्ति से यह पूछे जाने पर कि आप क्या कर रहे हो? और वह कहे कि 'मैं भोजन पका रहा हूँ' तो यह कथन वर्तमान नैगमनय का है। ... शास्त्री प्रथम वर्ष के छात्र को शास्त्री कहना, इसी नय का प्रयोग है। सम्मेद शिखर की यात्रा पर जाते समय रेलवे स्टेशन जाने के लिए ऑटो रिक्शा में बैठा हुआ व्यक्ति, इसी नय का प्रयोग करते हुए कहता है कि 'मैं शिखरजी जा रहा हूँ।' . . 3. भावी नैगमनय - जो अनिष्पन्न भावी पदार्थ को निष्पन्न की तरह कहता है, उसे भावी नैगमनय कहते हैं। जैसे, अप्रस्थ को प्रस्थ कहना। वर्तमान नैगमनय में तो प्रारम्भ हो चुके कार्य में उसकी पूर्णता के संकल्प का ज्ञान किया जाता है, जबकि भावी नैगमनय में कार्य प्रारम्भ ही नहीं हुआ, मात्र उसे करने का संकल्प मात्र किया है। यह संकल्प ही भावी नैगमनय का विषय बनता है। यह नय, संकल्प मात्र को ग्रहण करता है। जगत् में वैसी घटना पूर्व में घटी या नहीं घटी, घटेगी या नहीं - इससे इसे कुछ भी प्रयोजन नहीं है। इसकी दुनिया संकल्पों में घटित घटनाएँ हैं। संकल्प-जगत् में तो वह सब कुछ वर्तमान में घटित हो ही रहा है, जो यह नय कहता है,
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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