________________
288
नय - रहस्य
हैं - अनिष्पन्न अर्थ में संकल्प मात्र को ग्रहण करनेवाला नैगमनय है । जैसे - हाथ में फरसा लेकर जाते हुए किसी पुरुष को देखकर कोई अन्य पूछता है आप किस काम से जा रहे हैं ? तो वह कहता है - प्रस्थ' लेने जा रहा हूँ। यद्यपि उस समय उसके हाथ में प्रस्थ नहीं, फरसा है, तथापि उसका इरादा लकड़ी काटकर, प्रस्थ बनाने का है, इसलिए 'प्रस्थ' लाने का वचन प्रयोग किया गया है।
-
स्वामी कार्तिकेय, काल की अपेक्षा नैगमनय के तीन भेद बताते हुए कहते हैं - जो नय अतीत, अनागत और वर्तमान को विकल्परूप से साधता है, वह नैगमनय है। 2
इस परिभाषा के आधार पर नैगमनय तीन प्रकार का कहा है 1. भूत नैगमनय 2. वर्तमान नैगमनय और 3. भावी नैगमनय यहाँ द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र, गाथा 205-207 के आधार पर इनका स्पष्टीकरण किया जा रहा है
-
-
1. भूत नैगमनय जो कार्य हो चुका हो, उसका वर्तमान काल में आरोप करना, भूत नैगमनय है । जैसे, आज के दिन भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था । यहाँ भूतकाल में घटित घटना का वर्तमान में संकल्प किया जा रहा है, यही संकल्प करनेवाला ज्ञान, नैगमनय है।
-
1. अनाज नापने के लिए लकड़ी का बर्तन 2. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 571
हमारे सामाजिक जीवन में भी इस नय का प्रयोग, बहुत प्रचलित है । यदि इस नय को स्वीकार न किया जाए तो दीपावली, महावीर जयन्ती, रक्षा-बन्धन आदि पर्व मनाना तथा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आदि आयोजित करना सम्भव न हो सकेगा। सेवा-निवृत्त जज को बाद में भी जज कहने का रिवाज जगत् में है ही। नैगमनय की