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नैगमादि सप्त नय महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय में नैगमादि सात नयों का स्वतन्त्र उल्लेख किया गया है। जबकि उसकी टीकाओं तथा धवला टीका आदि में इन सात नयों को द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनयों के भेद के रूप में भी बताया गया है। धवला टीका का वह कथन इसप्रकार है :___ इसप्रकार वह नय दो प्रकार का है - द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। वहाँ जो द्रव्यार्थिकनय है, वह तीन प्रकार का है - नैगम, संग्रह और व्यवहार। पर्यायार्थिकनय चार प्रकार का है - ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत। उक्त भेद विगत अध्याय में वर्णित भेदों से भिन्न हैं। .
इन सातों नयों का स्वरूप, भेद-प्रभेद, प्रयोग तथा उपयोगिता आदि सभी बिन्दुओं पर श्लोकवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, धवला टीका, द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र तथा परमभावप्रकाशक नयचक्र में विस्तृत विवेचन उपलब्ध है, अतः यहाँ उनकी परिभाषा प्रयोग तथा उपयोगिता पर संक्षिप्त चर्चा की जा रही है।
नैगमनय श्लोकवार्तिक, नय-विवरण, श्लोक 31 में संकल्प मात्र के ग्राहक को नैगमनय कहा है। इस सन्दर्भ में आचार्य पूज्यपाद लिखते
नय
1. अध्याय 1, सूत्र 33