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________________ 282 नय - रहस्य का अभाव मानने पर ज्ञान और ज्ञेय दोनों के अभाव का प्रसंग प्राप्त होने से सर्वलोप का प्रसंग आता है, जो किसी को भी इष्ट नहीं है; अतः अर्थनय की उपयोगिता असन्दिग्ध है। ज्ञाननय ज्ञान की पर्याय में झलकने वाले सभी पदार्थ ज्ञानात्मक वस्तु हैं तथा ज्ञानात्मक वस्तु को जाननेवाला ज्ञान, ज्ञाननय है। ज्ञानात्मक वस्तु, ज्ञान का ही ज्ञेयाकार परिणमन होने से ज्ञान ही है, अतः ज्ञाननय का विषय भी ज्ञान ही है। जिसप्रकार शब्दनय से अर्थनय का विषय अधिक है, उसीप्रकार अर्थनय से अधिक विषय ज्ञाननय का है, क्योंकि वह सत् पदार्थों सम्बन्धी ज्ञान को तो अपना विषय बनाता ही है, असत् कल्पनाओं को भी वह अपना विषय बनाता है। लोक में विद्यमान वस्तुएँ तो ज्ञान का विषय बनती ही हैं, परन्तु जिनकी सत्ता लोक में है ही नहीं - ऐसे असत् पदार्थों की कल्पना भी ज्ञान में उत्पन्न होती है और उन सबको ज्ञान जानता है। अखबारों में छपनेवाले कार्टून चित्रों / कार्टून फिल्मों के माध्यम से चित्रकारों के ज्ञान में उत्पन्न होनेवाली कल्पना का अनुमान सहज हो जाता है। जगत् की कल्पनाओं में रावण के दश-मुख, विभिन्न देवीदेवताओं के विचित्र रूप तथा हम सबको भी स्वप्न में दिखनेवाले अटपटे और असम्भव-से दृश्य - यह सब कल्पना लोक ही है, जो ज्ञान में झलकता है और ज्ञाननय का विषय बनता है । ज्ञानलोक में बननेवाले इन काल्पनिक पदार्थों का प्रभाव इतना सशक्त है कि उसके आधार पर सदियों से अनेक रीति-रिवाज, परम्परा तथा बड़े-बड़े उत्सवों का आयोजन जगत् में प्रचलित है, जिस पर करोड़ों लोगों का समय, शक्ति, धन तथा जीवन भी समर्पित हो रहा है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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