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________________ 276 नय - रहस्य इसप्रकार यदि कर्मोपाधिसापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय, मोह-राग-द्वेषादि विकारों का ज्ञान कराके उनके अभाव करने की प्रेरणा देता है तो कर्मोपाधिनिरपेक्ष अनित्य- शुद्धपर्यायार्थिकनय, वर्तमान ज्ञानपर्याय को भी रागादि से भिन्न स्वभाववाली दिखाकर मूल द्रव्यस्वभाव में जाने की राह दिखाता है, क्योंकि हमारी वर्तमान प्रगट ज्ञानपर्याय भी सूर्य की किरण के समान स्वभाव का ही अंश है। प्रश्न - कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिकनय और कर्मोपाधिनिरपेक्ष अनित्य-शुद्धपर्यायार्थिकनय में क्या अन्तर है ? उत्तर - पर्यायदृष्टि से द्रव्य को भी अशुद्ध कहा जाता है, अतः पर्यायगत रागादि को गौण करके त्रिकाली शुद्ध द्रव्यस्वभाव को देखना कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिकनय का कार्य है, जबकि कर्मोपाधिनिरपेक्ष अनित्य-शुद्धपर्यायार्थिकनय, वर्तमान ज्ञानपर्याय को रागादिभावों से भिन्न देखता है। इसीप्रकार कर्मोपाधिसापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय, त्रिकाल शुद्ध स्वभाव को गौण करके, रागादिभावों की मुख्यता से द्रव्य को अशुद्ध देखता है और कर्मोपाधिसापेक्ष अशुद्धपर्यायार्थिकनय, रागादिरूप परिणमित वर्तमान पर्याय को देखता है। प्रश्न शुद्धद्रव्यार्थिकनय और शुद्धपर्यायार्थिकनय इन दोनों में कौन - सा नय उपादेय है ? उत्तर वस्तु - स्वरूप का निर्णय करने के लिए तो सभी नय उपादेय हैं। आत्मानुभूति की प्रक्रिया में समस्त कर्मोपाधियों से भिन्न, द्रव्य-गुण- पर्याय में व्याप्त, परमभावग्राही द्रव्यार्थिकनय के विषयभूत अपने चैतन्यस्वभाव को जानकर, उसी में रमने जमने का पुरुषार्थ करना चाहिए । —
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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