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________________ 274 नय-रहस्य कर्मोपाधि के अन्तर्गत औपशमिकादि निर्मल भावों को भी ग्रहण किया जाता है - यह जानना यहाँ प्रयोजनभूत है। पर्याय भी कर्मोपाधि से निरपेक्ष है ___ यहाँ यही बात विशेषरूप से विचारणीय है कि द्रव्यस्वभाव को कर्मोपाधि से रहित देखने की बात तो अध्यात्म ग्रन्थों का मूल आधार है और अध्यात्म-रसिक समाज में भी यही बात मुख्यरूप से चर्चित भी है, परन्तु पर्याय में तो राग-द्वेष, सुख-दुःख हैं ही, अतः इनका निषेध करके पर्यायों को सिद्ध समान शुद्ध मानने से क्या निश्चयाभास नहीं होगा? फिर यहाँ पर्याय को भी कर्मोपाधि से निरपेक्ष क्यों बताया जा रहा है? क्या जिनागम में अन्यत्र भी ऐसे प्रयोग उपलब्ध हैं? इत्यादि . अनेक प्रश्नों का समाधान आवश्यक है। प्रश्न - पर्यायों को कर्मोपाधि से निरपेक्ष देखना निश्चयाभास है या नहीं? __ उत्तर - कर्मोपाधिनिरपेक्ष अनित्य-शुद्धपर्यायार्थिकनय के साथसाथ कर्मोपाधिसापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय भी है। यदि यहाँ दोनों नयों की विवक्षा समझी जाए तो निश्चयाभास का प्रश्न ही नहीं उठता, अपितु वर्तमान पर्याय में भी कर्मोपाधिरहित ज्ञानस्वभाव के आविर्भाव से दृष्टि अखण्ड ज्ञायक में चली जाती है और रागादि कर्मोपाधियों का अभाव होना प्रारम्भ हो जाता है। यद्यपि पण्डित टोडरमलजी ने वर्तमान पर्याय को सर्वथा शुद्ध मानने को निश्चयाभास कहकर उसका निषेध किया है, तथापि यहाँ कर्मोपाधिसापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय के विषयभूत रागादि को भी गौणरूप से स्वीकार करने के कारण वर्तमान पर्याय को शुद्ध मानने पर निश्चयाभास का प्रसंग नहीं आता।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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