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________________ 268 नय-रहस्य स्थूल पर्यायों के काल की अपेक्षा अग्रलिखित भेद भी किये जाते हैं - (क) अनादि-अनन्त पर्याय - सुमेरु पर्वत, अकृत्रिम जिनालय, अकृत्रिम जिनबिम्ब आदि पुद्गल पर्यायें एवं अभव्य की संसाररूप पर्यायें, अनादि-अनन्त पर्यायें हैं। (ख) अनादि-सान्त पर्याय - भव्य जीव की संसाररूप पर्याय, अनादि-सान्त है। . (ग) सादि-अनन्त पर्याय - जीव की सिद्ध पर्याय, सादिअनन्त पर्याय है। (घ) सादि-सान्त पर्याय - जीव की मनुष्यादि पर्यायें, वस्त्राभूषण, मकान आदि पुद्गल पर्यायें तथा प्रत्येक द्रव्य की एक समयवर्ती पर्यायें सादि-सन्तिं पर्यायें हैं। इसप्रकार प्रथम दो पर्यायार्थिकनय, अनेक समयवर्ती स्थूल पर्यायों के अनादि-अनन्त एवं सादि-अनन्त भेद का ज्ञान कराते हैं। द्रव्य (सत्ता) की सापेक्षता और निरपेक्षता से वर्णित पर्याय की अशुद्धता और शुद्धता ___ पर्यायार्थिकनय का तीसरा भेद सत्तानिरपेक्ष, अनित्य-शुद्धपर्यायग्राही तथा चौथा भेद सत्तानिरपेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायग्राही है। यहाँ भी द्रव्यार्थिक नय के भेदों के समान पर्यायार्थिकनय की भी शुद्धता और अशुद्धता से आशय द्रव्यांश (ध्रुवसत्ता) के साथ निरपेक्षता और सापेक्षता है। पर्याय, उत्पाद-व्ययरूप अंश है। जब इसे ध्रुव-सत्ता के साथ मिलाकर देखा जाता है, तब सत्तासापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय कहलाता है तथा सत्ता से निरपेक्ष मात्र उत्पाद-व्यय को जाननेवाला नय, अनित्य-शुद्धपर्यायार्थिकनय कहा जाता है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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