________________
267
पर्यायार्थिकनय के भेद-प्रभेद ____4. सत्तासापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय - जो नय एक समय में ध्रुवत्व (सत्ता) से संयुक्त उत्पाद-व्यय को ग्रहण करता है, वह अनित्य-स्वभावग्राही सत्तासापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय है।
5. कर्मोपाधिनिरपेक्ष अनित्य-शुद्धपर्यायार्थिकनय - जो नय, कर्मोपाधि से निरपेक्ष पर्यायों को ग्रहण करके, संसारी जीवों की पर्याय को सिद्ध के समान शुद्ध कहता है, वह कर्मोपाधिनिरपेक्ष अनित्यशुद्धपर्यायार्थिकनय है।
6. कर्मोपाधिसापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय - जो नय, कर्मोपाधिसहित पर्यायों को ग्रहण करता है, वह कर्मोपाधिसापेक्ष अनित्य-अशुद्धपर्यायार्थिकनय है। जैसे, संसारी जीवों के जन्म-मरण होता है -
पर्यायार्थिकनय के उक्त छह भेदों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पर्याय को छह प्रकार से देखा गया है। यहाँ उनका संक्षिप्त विवेचन किया जा रहा है -
पर्यायों की नित्यता - प्रथम दो भेद, अनादिनित्य एवं सादिनित्य पर्यायों को विषय बनाते हैं। यद्यपि पर्याय एक समय की होती है, तथापि एक समय तो केवली भगवान के ज्ञानगम्य है, क्षयोपशमज्ञान में एक समय पकड़ में नहीं आता; अतः अनेक समयवर्ती स्थूल पर्यायों को भी पर्याय कहा जाता है। मनुष्य, देव आदि संसारी जीवों की स्थूल पर्यायें तथा सिद्धजीव की स्थूल पर्याय अनेक समयवर्ती पर्यायें हैं। जैसे, बालक की लम्बाई व वजन आदि निरन्तर बढ़ता होने पर भी हमारे ख्याल में एक-एक समय का परिवर्तन नहीं आता, अतः अनेक समयवर्ती अनादिकालीन एवं अनन्त भविष्यकालीन एकरूप पर्यायों के समुदाय को नित्यपर्याय कहकर अनादिनित्य व सादिनित्य ऐसे भेद किये हैं।