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द्रव्यार्थिकनय के भेद-प्रभेद
उत्तर - दृष्टि के विषय में क्या शामिल है और क्या नहीं - यह निर्णय करना ज्ञान का कार्य है; अतः इस अभेद पिटारे को खोलेंगे तो दृष्टि का विषय ही नहीं रहेगा, क्योंकि भेद तो पर्यायार्थिक व्यवहारनय का विषय है। दृष्टि का विषय, रंग-राग और भेद से भिन्न है, जिसे त्रिकाली अभेद एक अखण्ड ज्ञायकभावरूप परमपारिणामिकभाव के रूप में जाना जाता है। पारिणामिकभाव का स्वरूप स्पष्ट करते हुए पण्डित प्रवर टोडरमलजी लिखते हैं - सर्व भेद जिसमें गर्भित हैं, ऐसा चैतन्यभाव सो पारिणामिकभाव है।' भेद-गर्भित होने का आशय, उस पर दृष्टि नहीं होना तथा उसे गौण करने से है। यदि गुण, शक्ति या धर्मों पर विचार किया जाए तो भेद गर्भित कहाँ रहे, वे तो प्रगट हो गये।
चैतन्यभाव तो वस्तु के अनन्त गुण एवं पर्यायों में व्याप्त है, अतः चैतन्यभाव में सब समा जाते हैं। गुण, धर्म आदि हैं या नहीं - इस विकल्प से अतिक्रान्त होकर निर्विकल्प चैतन्य में अहंपना करना ही श्रेयस्कर है।
अभ्यास-प्रश्न
1. द्रव्यार्थिकनय के भेदों को जानने की आवश्यकता स्पष्ट कीजिए। 2. द्रव्यार्थिकनय के दश भेदों की शुद्ध या अशुद्ध संज्ञा, किस अपेक्षा सम्भव __ है - स्पष्ट कीजिए। 3. द्रव्यार्थिकनय के दशों भेदों की परिभाषा और स्वरूप स्पष्ट कीजिए। 4. गुण, शक्ति और धर्म का आशय स्पष्ट कीजिए।
1. मोक्षमार्गप्रकाशक, अध्याय 7, पृष्ठ 198 .