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________________ 264 नय - रहस्य कहा जा सकता है। ज्ञानमात्र स्वरूप की अपेक्षा उसमें एकत्व धर्म तथा अनेक ज्ञेयाकाररूप होने की अपेक्षा उसमें अनेकत्व धर्म भी कहा जा सकता है। इसीप्रकार अस्तित्व - नास्तित्व आदि धर्म, ज्ञान में भी घटित किये जा सकते हैं। प्रश्न - एक द्रव्य के एक गुण में दूसरा गुण नहीं होता, परन्तु उसमें अन्य गुणों का रूप होता है इस कथन का क्या आशय है ? उत्तर - एक द्रव्य के गुणों में परस्पर कथंचित् भिन्नता तो होना ही चाहिए, अन्यथा अनन्त गुण कैसे सम्भव होंगे ? प्रत्येक गुण का स्वरूप, अन्य गुणों से भिन्न होता है, तभी वह अपनी भिन्न पहचान रखता है। अस्तित्व और ज्ञानगुण भिन्न-भिन्न हैं, परन्तु अस्तित्व में ज्ञान का भी रूप ( स्वरूप नहीं ) है, अन्यथा आत्मा का अस्तित्व अचेतन हो जाएगा। ज्ञान में भी अस्तित्व का रूप है ( स्वरूप नहीं), अन्यथा ज्ञान, अस्तित्वरहित होने से उसमें शून्यत्व का प्रसंग आएगा । एक गुण में दूसरे गुणों के रूप की चर्चा पण्डित श्री दीपचन्दजी शाह कासलीवाल कृत चिद्विलास आदि ग्रन्थों में तथा पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचनों में भी विस्तार से प्राप्त होती है। - इसप्रकार यहाँ वस्तु-स्वरूप को गहराई से समझने के लिए गुण, शक्ति और धर्म के स्वरूप पर संक्षिप्त विचार किया गया है। प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, पंचाध्यायी आदि ग्रन्थों से इनका विस्तृत स्वरूप जाना जा सकता है। बुद्धि की क्षमता के अनुसार ही विस्तार में जाना उचित है, अन्यथा हम उलझ भी सकते हैं, भ्रमित भी हो सकते हैं; अतः अनन्त शक्तियों / गुणों के अखण्ड पिण्ड चैतन्यमात्र स्वभाव को जानने के प्रयोजन की मुख्यता रखकर ही आगमाभ्यास करना योग्य है। गुण, शक्ति और धर्म; इनमें दृष्टि के विषय में क्या-क्या शामिल होता है ? प्रश्न -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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