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द्रव्यार्थिकनय के भेद-प्रभेद
263 आदि तो गुण हैं, परन्तु छोटा/बड़ा, लम्बा/ठिगना, मोटा/पतला आदि विशेषताएँ किसी अपेक्षा से ही कही जा सकती हैं। अपने से अधिक उम्रवाले की अपेक्षा उसे छोटा तथा कम उम्रवाले की अपेक्षा उसे बड़ा कह सकते हैं। अपेक्षा लगाए बिना उसे छोटा/बड़ा आदि नहीं कह सकते। इसप्रकार पदार्थ की सापेक्ष विशेषताओं को धर्म शब्द से कहा जाता है।
इसीप्रकार द्रव्य या गुणों की सामर्थ्य, क्षमता या ताकत कितनी है - इसका बोध शक्तियों के द्वारा होता है। ज्ञान, आत्मा का गुण है तथा इस गुण में अपना कार्य करने की जो उत्कृष्ट सामर्थ्य है, वही इसकी शक्ति है। अंग्रेजी के ‘पावर' शब्द से शक्ति को अच्छी तरह समझा जा सकता है।
प्रश्न – ज्ञान, दर्शन, सुख आदि आत्मा के गुण भी हैं और 47 शक्तियों में भी इनके नाम आते हैं। इसीप्रकार अस्तित्व गुण भी है तथा अस्तित्व-नास्तित्व धर्म में भी अस्तित्व कहा है। अतः इनके स्वरूप को भिन्न-भिन्न कैसे समझा जाए?
उत्तर - गहराई से विचार किया जाए तो एक ही भाव में गुण, शक्ति और धर्मपना घटित किये जा सकते हैं। एक व्यक्ति गाना जानता है तो गाना उसका गुण है, कितनी देर गा सकता है - यह उसकी शक्ति है तथा बहुत अच्छा गायक है या साधारण - यह दूसरों से तुलना करके ही जाना जाएगा, अतः गाने की प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी, उसके सापेक्षिक धर्म कहे जाएँगे। ___इसीप्रकार ज्ञान आत्मा की खूबी/विशेषता होने से गुण है। अनन्त ज्ञेयों को जानने की क्षमता, उसकी शक्ति है तथा कम या अधिक ज्ञेयों को जानने की अपेक्षा उसे हीन या अधिक कहना धर्म