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________________ 261 द्रव्यार्थिकनय के भेद-प्रभेद 1. गुणों की पर्यायें होती हैं, धर्मों की नहीं - गुणों में उत्पाद-व्ययरूप परिणमन होता है, अतः प्रतिसमय नईनई अवस्था उत्पन्न होती है, जिसे पर्याय कहते हैं। धर्मों में गुणों के समान उत्पाद-व्ययरूप अवस्था नहीं देखी जाती, वे वस्तु में सापेक्ष योग्यतारूप होते हैं। 2. गुण, परस्पर विरोधी नहीं होते, जबकि धर्म परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं - गुणों के स्वरूप में परस्पर विरोध नहीं होता। ज्ञान-दर्शन-वीर्यादि गुणों का स्वरूप परस्पर भिन्न तो है, परन्तु विरोधी नहीं, जबकि अस्ति-नास्ति, नित्य-अनित्य आदि धर्मों में परस्पर भिन्नता तो है ही, उनके स्वरूप में परस्पर विरोध भी प्रतीत होता है। ____ 3. गुण, निरपेक्ष होते हैं और धर्म, सापेक्ष होते हैं - निरपेक्षता से आशय यह है कि गुण, द्रव्य के स्वभावरूप से उनमें त्रिकाल विद्यमान रहते हैं। उनके होने में द्रव्य या पर्याय की अपेक्षा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। जैसे, ज्ञान-दर्शन आदि गुण, द्रव्य की अपेक्षा हैं या पर्याय की - ऐसा कोई प्रश्न खड़ा नहीं होता; परन्तु धर्मों का स्वरूप परस्पर सापेक्ष होता है। वस्तु की नित्यता द्रव्य की अपेक्षा और वस्तु की अनित्यता पर्याय की अपेक्षा रखती है। इसीप्रकार प्रायः प्रत्येक धर्म-युगल में एक धर्म, द्रव्य की अपेक्षा और दूसरा धर्म, पर्याय की अपेक्षा सम्भव होता है। हाँ, अस्ति-नास्ति धर्म-युगल में द्रव्यपर्याय के बदले स्व-परचतुष्टय की अपेक्षा लागू होती है। अपेक्षा के बिना धर्म का स्वरूप न सम्भव है और न समझा या समझाया जा सकता है, जबकि गुणों और शक्तियों में ऐसी कोई बात नहीं होती। . अनेकान्तमय धर्मों का स्वरूप परस्पर विरोधी होने से ही वस्तु का स्वरूप कहा जाता है। परस्पर विरोधी धर्मों का भिन्न-भिन्न
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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