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________________ नय - रहस्य अपेक्षा आ जाती है; वस्तु का स्वरूप दर्शाते समय किसी भी प्रकार से पर - पदार्थ का आश्रय लेना, दृष्टि की अशुद्धता है, अतः इसे अशुद्धद्रव्यार्थिकन कहना अनुचित नहीं लगता है। 4. परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय - वस्तु का त्रैकालिक अखण्ड द्रव्य, शुद्ध - अशुद्ध की कल्पना से रहित त्रिकाल शुद्ध है, यही परमभाव है; अतः त्रैकालिक शुद्धता की अपेक्षा इसे ग्रहण करनेवाले नय को शुद्धद्रव्यार्थिक कहना भी अनुचित नहीं लगता है। इन चार नयों को शुद्ध / अशुद्ध कहना या नहीं - इस बात पर भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं, परन्तु यह बात तो सर्वमान्य है कि ये नय, वस्तु के द्रव्यांश को अधिक गहराई से स्पष्ट करते हैं, जिसे समझने से उसका अवलम्बन लेकर स्वानुभूति - सुधा का पान करने में सरलता हो जाती है। 260 प्रश्न अस्ति नास्ति स्वभाव की चर्चा करते समय संकेत किया गया था कि गुण, शक्ति, स्वभाव और धर्म की चर्चा इस प्रकरण के अन्त में करेंगे। कृपया इस सम्बन्ध में कुछ स्पष्टीकरण दीजिए । द्रव्य-क्षेत्र - काल - भावरूप पदार्थ में जो भाव है, वही वस्तु का स्व-भाव है। यह स्वभाव ही गुण, शक्ति या धर्मरूप होता है; अतः ये तीनों ही वस्तु के स्वभाव हैं। उत्तर यद्यपि वत्थु सहावो धम्मो इस सूक्ति के अनुसार गुण, शक्ति, स्वभाव आदि सभी को धर्म संज्ञा दी जा सकती है, तथापि जब गुण और धर्म की चर्चा करते हैं तो गुणों से आशय अस्तित्वादि सामान्य गुण तथा चेतन/अचेतन आदि विशेष गुणों से और धर्म से आशय अस्तिनास्ति आदि परस्पर विरुद्ध स्वभावी धर्मों से होता है । गुणों के समान ये धर्मयुगल भी अनन्त होते हैं । गम्भीरता से विचार किया जाये तो इनमें निम्न अन्तर स्पष्ट प्रतीत होते हैं - -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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