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नय-रहस्य स्वभाव, 5.एकप्रदेशस्वभाव, 6.अनेकप्रदेशस्वभाव, 7. विभावस्वभाव, 8. शुद्धस्वभाव, 9. अशुद्धस्वभाव और 10. उपचरितस्वभाव - ये दश विशेष स्वभाव हैं।
उपर्युक्त ग्यारह सामान्य स्वभावों में अन्तिम परमस्वभाव ही इस परमभावग्राही द्रव्यार्थिकनय का विषय है, जिसे विशेष स्वभावों में समागत शुद्ध, अशुद्ध और उपचरितस्वभाव से रहित परिभाषित किया गया है। . ___ आलापपद्धति, पृष्ठ 224 पर शुद्ध, अशुद्ध और उपचरितस्वभाव को ग्रहण करनेवाले नयों को इसप्रकार स्पष्ट किया है -
शुद्धद्रव्यार्थिकनय से शुद्धस्वभाव है, अशुद्धद्रव्यार्थिकनय से अशुद्धस्वभाव है और असद्भूतव्यवहारनय से उपचरितस्वभाव है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह परमस्वभाव, शुद्ध और अशुद्ध के भेद से भी रहित कहा गया है, जिसे अन्यत्र प्रमत्त और अप्रमत्त भावों से रहित या चार भावों से भिन्न कहा गया है। इस परमभाव को जाननेवाला यह नय कहा गया है। आत्मा में शुद्धता है या नहीं? अथवा अशुद्धता है या नहीं? तथा उसका अन्य वस्तुओं से सम्बन्ध है या नहीं? - इन सभी प्रश्नों का उत्तर देने वाले शुद्धद्रव्यार्थिकनय, अशुद्धद्रव्यार्थिकनय तथा असद्भूतव्यवहारनय हैं, परन्तु यह नय तो अपने विषय में ऐसे प्रश्न ही खड़े नहीं होने देता। यह तो इन सभी विकल्पों को विलीन करता हुआ निर्विकल्प अखण्ड चिन्मात्र वस्तु को ग्रहण करता है।
__ आचार्यदेव कहते हैं कि अब प्रश्नोत्तर की भूमिका से भी ऊपर उठकर निर्विकल्प वस्तु मात्र का निर्विकल्प आस्वादन करो....। इसीलिए उन्होंने सिद्धि-कामियों द्वारा यह जानने योग्य है - ऐसा