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________________ 255 द्रव्यार्थिकनय के भेद-प्रभेद को आत्मा का नास्तित्व माना जाए या शरीरादि की आत्मा में नास्ति को आत्मा का नास्तित्व धर्म कहा जाए? वस्तुतः दोनों की ही एकदूसरे में नास्ति है, अत्यन्त अभाव है, परन्तु एक वस्तु का दूसरी वस्तु में न होना ही उसका न + अस्तित्व है; अतः आत्मा में शरीर का न होना, शरीर का नास्तित्व है, जो शरीर को आत्मारूप नहीं होने देता और शरीर में आत्मा का न होना, आत्मा का नास्तित्व धर्म है, जो आत्मा को शरीररूप नहीं होने देता। इसप्रकार दोनों द्रव्यों के नास्तित्व धर्म अपने-अपने द्रव्य को अन्य द्रव्यरूप नहीं होने देकर उन्हें सुरक्षित रखते हैं। नास्तित्व धर्म का स्वरूप समझने में परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा आती है, इसीलिए इसे जाननेवाले ज्ञान को परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनय कहा जाता है। 10. परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय जो नय, शुद्ध, अशुद्ध और उपचरित स्वभाव से रहित द्रव्यस्वभाव (परम स्वभाव) को ग्रहण करता है, वह परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय है। सिद्धि की कामना रखनेवालों को उसे अच्छी तरह जानना चाहिए। आलाप-पद्धति, पृष्ठ 213 पर आत्मा के 11 सामान्य स्वभाव और 10 विशेष स्वभाव बताए गए हैं, जो इसप्रकार हैं - 1. अस्तिस्वभाव, 2. नास्तिस्वभाव, 3. नित्यस्वभाव, 4.अनित्यस्वभाव, 5. एकस्वभाव, 6. अनेकस्वभाव, 7. भेदस्वभाव, 8. अभेदस्वभाव, 9. भव्यस्वभाव, 10. अभव्यस्वभाव और 11. परमस्वभाव - ये ग्यारह सामान्य स्वभाव हैं। 1. चेतनस्वभाव, 2. अचेतनस्वभाव, 3. मूर्तस्वभाव, 4. अमूर्त
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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