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... नय-रहस्य अशुद्ध भेद नहीं किये गये हैं। . ___ गुण, धर्म, शक्ति या स्वभाव के सम्बन्ध में विशेष चर्चा, इसी अध्याय में आगे की गई है।
आलापपद्धति, पृष्ठ 220 पर अस्तित्व और नास्तित्व को इसप्रकार परिभाषित किया गया है -
स्वभाव के लाभ से च्युत नहीं होने से द्रव्य, अस्तिस्वभाववाला है तथा परस्वरूप नहीं होने से नास्तिस्वभाववाला है।
यह नास्तित्व धर्म भी प्रत्येक वस्तु में अस्तिरूप से विद्यमान है, परन्तु इसका स्वभाव या कार्य, वस्तु को उससे भिन्न, अन्य वस्तुरूप नहीं होने देना है अर्थात् वस्तु के पर-प्रवेश को पूर्णतया प्रतिबन्धित करना है, इसलिए इसका नाम नास्तित्व धर्म सार्थक है। इसका स्वरूप किसी भी राष्ट्र के विदेशमन्त्री जैसा है, जो अन्य मन्त्रियों की भाँति उसी देश का नागरिक होने पर भी विदेश-सम्बन्धी प्रकरणों को देखता है, इसलिए वह पूर्णतया स्वदेशी होने पर भी विदेशमन्त्री कहलाता है।
विदेशमन्त्री के समान नास्तित्व नाम होने के साथ-साथ इसका कार्य रक्षामन्त्री जैसा भी है। जिसप्रकार गृह मन्त्रालय देश की कानूनव्यवस्था कायम रखकर, आन्तरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करता है और रक्षा-मन्त्रालय किसी अन्य राष्ट्र को अपने भीतर प्रवेश नहीं करने देता; उसीप्रकार अस्तित्व धर्म, वस्तु को स्व-चतुष्टय में सुरक्षित रखता है
और नास्तित्व धर्म, वस्तु को पर-चतुष्टय में प्रवेश से बचाकर उसकी सुरक्षा करता है।
पर-प्रवेश का निषेधक यह नास्तित्व धर्म ही एक वस्तु का दूसरी वस्तु में अत्यन्त अभाव बताता है।
. यहाँ यह बात विचारणीय है कि आत्मा की शरीरादि में नास्ति