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________________ दीपक नयचक्र में इस नय के उदाहरण बताते हुए इसप्रकार अभिव्यक्त किया है - १. परमं पारिणामिकस्वभावं गृह्णातीति परमभावग्राहकः। अर्थात् जो परम पारिणामिकस्वभाव की मुख्यता से वस्तु को ग्रहण करता है, वह परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय है। २. पारिणामिकस्वभावप्रधानत्वेन परमस्वभावत्वम्। अर्थात् परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय में पारिणामिकस्वभाव की प्रधानता होने के कारण आत्मा, परमस्वभाव वाला है। ३. परमभावग्राहकेण भव्याभव्यपारिणामिकस्वभावम्।अर्थात् परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय से भव्य-अभव्य पारिणामिक स्वभाव हैं।' ४. शुद्धाशुद्धपरमभावग्राहकेण चेतनस्वभावम्। अर्थात् शुद्धाशुद्ध-परमभावग्राहकनय से जीव का चेतनस्वभाव है। ५. परमभावग्राहकेण कर्मनोकर्मणोरचेतनस्वभावत्वम्। अर्थात् परमभावग्राहकनय की अपेक्षा कर्म-नोकर्म का अचेतनस्वभाव है। ६. परमभावग्राहकेण कर्मनोकर्मणोर्मूतस्वभावत्वम्। अर्थात् परमभावग्राहकनय की अपेक्षा कर्म-नोकर्म का मूर्तस्वभाव है। ७. परमभावग्राहकेण पुद्गलं विहाय इतरेषाममूर्तस्वभावत्वम्। अर्थात् परमभावग्राहकनय की अपेक्षा पुद्गल को छोड़ कर बाकी द्रव्यों का अमूर्तस्वभाव है। ८. परमभावग्राहकेण कालपुद्गलाणोरेकदेशस्वभावत्वम्। अर्थात् परमभावग्राहकनय की अपेक्षा कालद्रव्य और पुद्गलाणु का एकप्रदेशस्वभाव है। उक्त उद्धरणों में परमभावग्राहकनय में भी शुद्धाशुद्ध विशेषण लगाये 1. वही, पृष्ठ 56 2. वही, पृष्ठ 93 3. वही, पृष्ठ 97 4. वही, पृष्ठ 97 5. वही, पृष्ठ 98 6. वही, पृष्ठ 98 7. वही, पृष्ठ 98 8. वही, पृष्ठ 99 ' नय-रहस्य -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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