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द्रव्यार्थिकनय के भेद - प्रभेद
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यद्यपि उत्पाद-व्यय, वस्तु का ही स्वभाव है । तत्त्वार्थसूत्र में द्रव्य का लक्षण ‘सत्' और सत् का लक्षण 'उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य' कहा गया है, तथापि एक सत् के तीन अंश होने से ये परस्पर कथंचित् भिन्न हैं, अन्यथा तीन अंश सिद्ध न होंगे । यहाँ ध्रुव अंश में उत्पाद - व्यय को मिलाकर देखा जा रहा है, इसलिए ध्रुव अंश या अंशी को अशुद्ध देखने के कारण इस नय को भी 'अशुद्धद्रव्यार्थिकनय' की संज्ञा दी गई है। इसीप्रकार जब उत्पाद-व्यय को भी ध्रुव के साथ देखा जाएगा तो भी अशुद्धता कही जाएगी, जो सत्तासापेक्ष अशुद्धपर्यायार्थिकनय का विषय होगा जिसका वर्णन आगे किया जाएगा।
प्रश्न उत्पाद - व्यय - ध्रौव्ययुक्तं सत् - यह कथन किस नय का विषय बनेगा ?
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मात्र
उत्तर भाई ! नय तो ज्ञाता या वक्ता के अभिप्राय में होते हैं, वाणी में नहीं; अतः किसे मुख्य किया जा रहा है और किसे गौण इस आधार पर यह कथन भी प्रमाण या विवक्षित नय का माना जाएगा। यदि हम अभेद सत् और उसके उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य - इन भेदों को बिना मुख्य- -गौण किये कहना चाहेंगे तो उक्त कथन प्रमाण का होगा तथा यदि उत्पाद - व्यय सहित ध्रुव या सत्ता का कथन करना चाहेंगे तो यह कथन, उत्पाद - व्यय सापेक्ष सत्ताग्राहक अशुद्धद्रव्यार्थिकनय का होगा, यदि उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य के भेदसहित सत् को मुख्य किया जाएगा तो यह भेद - कल्पनासापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय का कथन माना जाएगा।
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6. भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय
जो नय, द्रव्य में गुण-गुणी आदि का भेद करके, उनके साथ सम्बन्ध कराता है, वह भेद - कल्पना से सहित होने से भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिक नय है अर्थात् अखण्ड सत् को गुण-गुणी,