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________________ द्रव्यार्थिकनय के भेद-प्रभेद 241 देखा जाता है। उत्पाद-व्यय तो पर्यायगत धर्म हैं, परन्तु द्रव्यांश तो सदा वही का वही रहता है। पर्यायों से भिन्न त्रिकाली ध्रुव तो पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचनों की मुख्य विशेषता है। मानो ध्रुव की धुन लगाने की प्रेरणा देने के लिए ही उनका भरतक्षेत्र में जन्म हुआ हो । त्रिकाली ध्रुव की चर्चा इस युग में लुप्त - प्रायः थी, जिसका उद्योत पूज्य गुरुदेवश्री की मंगलवाणी में हुआ, अतः यह बात कुछ लोगों को नई लगती है, यह विचारधारा नया पन्थ - सा लगती है, परन्तु आगम के आलोक में विचार किया जाए तो यह नया पन्थ नहीं, अपितु जिनागम कथित मूल मार्ग है। यह द्रव्यार्थिकनय ही पर्यायों से पार त्रिकाली ध्रुव को लक्ष्य बनाने की प्रेरणा दे रहा है। प्रत्येक पदार्थ सत्स्वरूप है और सत्, उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यस्वरूप है अर्थात् सत् के ये तीन अंश हैं, जो परस्पर कथंचित् भिन्न हैं, इसलिए ध्रुव अंश भी उत्पाद - व्यय से कथंचित् भिन्न सिद्ध होता है; अतः यदि उत्पाद-व्यय को गौण करके सत्ता को देखा जाए तो द्रव्य मात्र ध्रुवरूप ही जाना जाता है और उसे जाननेवाला ज्ञान, उत्पाद-व्यय निरपेक्ष सत्ताग्राही शुद्धद्धव्यार्थिकनय कहलाता है। यहाँ ध्रुव अंश में उत्पाद-व्यय को नहीं मिलाया है, इसलिए उसे शुद्ध कहा है। श्री समयसार, गाथा 6 की टीका में ज्ञायकभाव को अनादिअनन्त कहकर, इसी नय का प्रयोग किया है। अध्यात्म ग्रन्थों में कदमकदम पर भगवान आत्मा को अनादि - अनन्त, नित्य, ध्रुव, शाश्वत अक्षय, जन्म-मरण से रहित आदि अनेक विशेषणों से समझाया गया है, जिनका आधार यह उत्पाद - व्ययनिरपेक्ष सत्ताग्राहक द्रव्यार्थिकनय ही है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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