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द्रव्यार्थिकनय के भेद - प्रभेद
जिनशासन की अद्भुत और शैली अनुपम स्याद्वाद की यह अनूठी कला है कि उसमें सामान्य, अभेद, नित्य तथा एकरूप द्रव्यांश को जाननेवाले द्रव्यार्थिकनय के भी अनेक भेद बताये गये हैं। जिसप्रकार पंचाध्यायीकार निश्चयनय का विषय - अभेद, अखण्ड, एक होने से उसके भेद ही स्वीकार नहीं करते; उसीप्रकार द्रव्यार्थिकनय के भेदों से भी इनकार किया जा सकता है, फिर भी निश्चयनय के शुद्ध और अशुद्ध ऐसे दो मूल भेदों के समान द्रव्यार्थिकनय के भी शुद्ध, अशुद्ध आदि अनेक भेद किये गये हैं।
द्रव्यार्थिकनय के ये भेद, उसकी विषय-वस्तु को भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से गहराई से समझने के प्रयोजन से किये गये हैं। वस्तु का द्रव्यांश शुद्ध है या अशुद्ध अथवा दोनों से निरपेक्ष है ? सत् है या असत् ? विशेषों से भिन्न है या अभिन्न ? इत्यादि अनेक प्रश्नों का समाधान इन्हें समझने से हो जाता है।
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करते
आलापपद्धति में शुद्ध और अशुद्धद्रव्यार्थिकनय के कोई भेद नहीं हुए ये दो भेद तथा अन्वयादि चार भेद मिलाकर कुल छह भेद बताये गये हैं, जो इसप्रकार हैं
1. शुद्धद्रव्यार्थिकनय
3. अन्वयद्रव्यार्थिकनय
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2. अशुद्धद्रव्यार्थिकनय
4. स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनय