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नय - रहस्य
उसमें प्रामाणिकता का अभाव कहा गया है, न कि वस्तु-स्वरूप के विरुद्ध होने से। जिनागम में कथित वस्तु-स्वरूप का, जिनागम कथित प्रमाण - नय द्वारा भेद - विज्ञान और वीतरागता के पोषण हेतु किया गया तत्त्व - निर्णय यथार्थ ही है, क्योंकि वही निर्णय, स्वानुभूति का आधार बनता है।
जिसप्रकार आजादी की लड़ाई भी गुलामी की अवस्था में लड़ी जाती है, रोग के अभाव का उपाय भी रोग के सद्भाव में किया जाता है, एक दरिद्र व्यक्ति भी धनवान से धन उधार लेकर, व्यवसाय करके, स्वयं धनवान बन जाता है; तो यहाँ तो अपने में अपना वैभव विद्यमान है, किसी से उधार नहीं लेना है, मात्र देव - शास्त्र - गुरु के आधार से उसे पहचानना है; अतः तत्त्व - निर्णय से दर्शनमोह मन्द - मन्दतर - मन्दतम होता हुआ, स्वानुभूति के माध्यम से उपशमित हो जाता हैं, तत्पश्चात् दर्शनमोह के क्षय का भी यही उपाय है । इसप्रकार द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकनयों के द्वारा वस्तु-स्वरूप का यथार्थ निर्णय करके द्रव्यस्वभाव का लक्ष्य करना ही श्रेयस्कर है।
अभ्यास-प्रश्न
1. द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, भाव की महत्ता प्रतिपादित कीजिए ।
2. आत्महित में द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक, दोनों नयों को जानने की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
3. द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव का स्वरूप, प्रमाण तथा द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनयों द्वारा बताइए ।