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________________ नय - रहस्य जिसप्रकार सम्यक् - अनेकान्त में सम्यक्-एकान्त सम्मिलित होता है, उसीप्रकार यहाँ 'सर्वथा' शब्द में 'कथंचित्' शामिल समझना चाहिए। 232 'सर्वथा' शब्द को अन्त दीपक के रूप में स्वीकार किया जाए तो उसमें सर्व, सर्वत्र और सर्वदा भी गर्भित हो जाते हैं। अग्नि, सर्वथा उष्ण है अथवा आत्मा, सर्वथा चित्स्वरूप है - इन कथनों में 'सर्वथा' शब्द में भाव की मुख्यता होने पर भी यह कथन द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावमयी सम्पूर्ण वस्तु के बारे में समझना चाहिए अर्थात् सर्व अग्नि, सर्वत्रसर्वदा-सर्वथा उष्ण अथवा सर्व आत्माएँ सर्वत्र - सर्वदा - सर्वथा चित्स्वरूप हैं - यह आशय है। इसप्रकार यह स्पष्ट है कि 'सर्वथा' शब्द का प्रयोग यदि अपरपक्ष को अच्छी तरह गौण करने के अभिप्राय से किया जाए तो वह सम्यकएकान्त रूप होगा और यदि अभिप्राय में अपरपक्ष का निषेध वर्त रहा हो तो वह मिथ्या - एकान्तरूप हो जाएगा। मात्र कथन में मिथ्यापना या . सम्यक्पना नहीं होता; सब अभिप्राय का ही खेल समझना चाहिए। अनेक स्थानों पर ‘सर्वथा' शब्द का प्रयोग, कथन को दृढ़ता प्रदान करने के लिए, किसी बात पर विशेष बल देने के लिए या ध्यान आकर्षित करने के लिए भी होता है। हम कब, किस कथन का, क्या भाव समझते हैं - यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है । प्रश्न जैनदर्शन में तो 'सर्वथा', 'एकान्त' और 'ही' - इन शब्दों का निषेध किया जाता है, जबकि आप इनका समर्थन कर रहे हैं ? यदि इन शब्दों का प्रयोग अलग-अलग करते हुए अपरपक्ष का निषेध न किया जाए तो सम्यक् - एकान्त होता है, जो कि अनेकान्त का सुफल है, परन्तु यदि अपरपक्ष का निषेध करने के लिए उत्तर - -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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