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. नय-रहस्य का उपदेश स्वीकार करके, द्रव्य-पर्याय की सन्धि करने योग्य है। ... शंका - द्रव्य-पर्याय की सन्धि का अर्थ क्या?
समाधान - पर्याय को पृथक् करके लक्ष्य में न लेते हुए, उसे अन्तर्मुख करके, द्रव्य के साथ एकाकार करना अर्थात् द्रव्य-पर्याय के भेद का विकल्प तोड़कर, एकतारूप निर्विकल्प अनुभव करना, सो द्रव्य-पर्याय की सन्धि है; वही दोनों नयों की सफलता है।
पर्याय को जानते हुए, उसी के विकल्प में रुक जावे तो वह नय की सफलता नहीं है; उसीप्रकार द्रव्य को जानते हुए, यदि उसमें एकाग्रता न करे तो वह भी नय की सफलता नहीं है। द्रव्य-पर्याय दोनों को जानकर, दोनों के विकल्प तोड़कर, पर्याय को द्रव्य में अन्तर्लीन-अभेद-एकाकार करके अनुभव करने में ही दोनों नयों की सफलता है।
___ हमारे सुखी होने के पक्ष में वस्तु का स्वभाव - यह बात विशेषरूप से विचारणीय है कि द्रव्य की नित्यता और पर्याय की अनित्यता, हमारे हित में है। वस्तु का जो अंश नित्य है, वह अनन्त ज्ञान और सुख का घन-पिण्ड है, जिसके अवलम्बन से पर्याय का दुःख नष्ट होकर अविनाशी सुख प्रगट हो जाता है; तथा जिस अंश में दुःख है और दुःख के कारणभूत मोह-राग-द्वेष हैं, वह पर्याय, स्वयं ही क्षणभंगुर है, अतः उसके नष्ट होने के प्रति हमें निश्चिन्त हो जाना चाहिए।
- अपरिवर्तनशील शुद्ध बुद्ध तत्त्व हमें निर्भय बनाकर दीनता से मुक्त करता है और विकार की क्षणभंगुरता, हमें उसके विनष्ट हो जाने के प्रति आश्वस्त करती है। - 1. आत्मधर्म (हिन्दी), वर्ष 16, अंक 182, जून 1960, कवर पृष्ठ पर