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________________ नय - रहस्य उत्तर क्षायोपशमिक श्रुतज्ञान प्रमाण में मुख्य-गौण किये बिना विवक्षित धर्म को स्पष्टता और गहराई से नहीं जाना जा सकता और किसी धर्म का गहन स्वरूप जाने बिना हेय और उपादेय की प्रक्रिया सम्भव नहीं होती। 228 - किसी सभा का फिल्मांकन करते समय सम्पूर्ण सभा की विशालता जानने के लिए पूरी सभा का एक साथ चित्र लिया जाना भी आवश्यक ' है, परन्तु प्रमुख वक्ता, विशेष मेहमान तथा श्रोता समुदाय - ये सभी एक साथ दिखने पर भी वक्ता की विशेष भाव-भंगिमाएँ तथा श्रोताओं पर होनेवाले प्रभाव को विशेषरूप से नहीं देखा जा सकेगा। यह सब देखने के लिए वक्ता और श्रोताओं को क्रमशः मुख्य- गौण करके उनके अलग-अलग चित्र लेना आवश्यक है। R फिल्मांकन - की इसी प्रक्रिया के समान वस्तु के दोनों पक्षों को प्रमाण और नय से जानने पर ही प्रयोजन की सिद्धि होती है। द्रव्य और पर्याय, दोनों अंशों को जानने का प्रयोजन मुझे क्या करना है ? इस प्रश्न का उत्तर, पर्यायांश को जानने से मिलता है; और मुझे कैसे प्राप्त करना है ? इस प्रश्न का उत्तर, द्रव्यांश को जानने से मिलता है। - हेयोपादेय का ज्ञान, पर्याय को जानने से होता है, क्योंकि दुःख और दुःख के कारणभूत मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्र, पर्याय में ही हैं तथा सुखी होने का उपाय और परिपूर्ण सुखस्वरूप मोक्ष भी पर्याय में ही प्रगट होते हैं; इसीलिए तो जीव - अजीव के साथ आस्रवादि पर्यायरूप तत्त्वों / पदार्थों का निर्णय करना, प्रयोजनभूत माना गया है। हेय - उपादेय को जानने के बाद यह समस्या उठती है कि हेय का त्याग और उपादेय का ग्रहण कैसे हो ? वर्तमान पर्याय का आश्रय करने
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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