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________________ 227 द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय अतः वस्तु-स्वरूप के यथार्थ निर्णय के लिए द्रव्य-पर्यायात्मक वस्तु का यथार्थ स्वरूप जानना आवश्यक है। यद्यपि प्रमाण द्वारा वस्तु का सम्पूर्ण स्वरूप जान लिया जाता है, तथापि किसी एक धर्म को मुख्य और शेष धर्मों को गौण किये बिना उस विवक्षित धर्म को जानना सम्भव नहीं है; इसलिए उसे द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनय द्वारा जानना भी आवश्यक है। __ प्रवचनसार, गाथा 114 की टीका में आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने वस्तु के सामान्य और विशेषस्वरूप को जाननेवाले द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनयों को, दोनों आँखों की उपमा देकर, एक आँख को सर्वथा बन्द करके, दूसरी आँख को पूरी तरह खुली रखकर नयों के माध्यम से जानने की सम्पूर्ण प्रक्रिया बताई है। उक्त टीका के अनुसार पर्यायार्थिक चक्षु (नय) को सर्वथा बन्द करके, मात्र खुली हुई द्रव्यार्थिक चक्षु (नय) से जीव को देखने पर मनुष्य, देव, नरक, तिर्यंच और सिद्ध पर्यायरूप विशेषों में रहनेवाला जीव-सामान्य दिखाई देता है। इसीप्रकार द्रव्यार्थिक चक्षु (नय) को सर्वथा बन्द करके मात्र खुली हुई पर्यायार्थिक चक्षु (नय) से जीव को देखने पर वह, वह जीवद्रव्य में रहनेवाले नर-नारकादि पर्यायरूप अन्य-अन्य दिखाई देता है। जब दोनों चक्षुओं को एक साथ खोलकर (प्रमाण से) देखा जाता है, तब नर-नारकादि पर्यायों में रहनेवाला जीव-सामान्य और जीव-सामान्य में रहनेवाले नर-नारकादि पर्यायविशेष, दोनों एक साथ दिखाई देते हैं। प्रश्न - जब सामान्य और विशेष दोनों अंश प्रमाण द्वारा एक साथ जान लिये जाते हैं तो फिर नयों द्वारा मुख्य-गौण करके मात्र एकएक अंश को जानने की क्या आवश्यकता है? ..
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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