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नय - रहस्य
6. इनके अतिरिक्त प्रवचनसार के 47 नयों में द्रव्यनय-पर्यायनय, सामान्यनय - विशेषनय आदि नयों की चर्चा भी की गई है, जिसकी समीक्षा 47 नय वाले अध्याय में उपलब्ध है।
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7. यद्यपि द्रव्यार्थिकनय के दस भेदों के विषयभूत द्रव्य के दस प्रकार भी कहे जा सकते हैं, परन्तु इस प्रकरण में उक्त प्रयोग ही मुख्यरूप से जानना चाहिए।
8. द्रव्यं - गुण - पर्याय का विस्तृत स्वरूप जानने के लिए पण्डित दीपचन्दजी कासलीवास कृत चिद्विलास ग्रन्थ अवश्य पढ़ना चाहिए । 'द्रव्य' शब्द के विषयभूत उक्त चारों प्रयोगों में दृष्टि का विषय क्या है ?
प्रश्न
उत्तर - द्रव्य-क्षेत्र - काल - भावमयी, सामान्य - अभेद - नित्यएक - ऐसा अखण्ड द्रव्य, दृष्टि का विषय है। इसे ही छठवीं गाथा की टीका में स्वतः सिद्ध, अनादि-अनन्त, नित्य-उद्योतरूप, स्पष्ट प्रकाशमान ज्योतिस्वरूप 'ज्ञायकभाव' कहा गया है। क्षेत्र और काल के भेद को गौण करके, मात्र भाव की मुख्यता से इसे ही 'चित्सामान्य' भी कहा जाता है।
वस्तुतः अनुभूति में द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव का भेद भी उदित नहीं होता, मात्र निर्विकल्प अखण्ड चिन्मात्र स्वभाव में मग्न परिणाम रहते हैं, परन्तु उसे समझाने के लिए उसके द्रव्य-क्षेत्र - काल-भावरूप विशेष की अपेक्षा भेद करके कहा जाता है।
प्रश्न -
आत्मानुभूति के काल में शुद्धनय के विषयभूत एक ज्ञायकभाव का ही आलम्बन रहता है तो द्रव्यार्थिक- पर्यायार्थिकनयों
द्वारा वस्तु को जानने की क्या आवश्यकता है? .
उत्तर
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आत्मानुभूति का प्रारम्भिक उपाय, तत्त्व-निर्णय है;