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________________ द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय तथा इन्द्रियज्ञान-गम्य भी नहीं हैं। काल भी प्रत्येक द्रव्य का अनादिअनन्त है। अतः द्रव्य, क्षेत्र और काल का स्वरूप सभी पदार्थों में लगभग एक-सा होने से इनके आधार से किसी पदार्थ का विशेष ( भिन्न) स्वरूप भासित नहीं हो सकता । 221 किसी पदार्थ को अन्य पदार्थों से भिन्न जानने के लिए विशेष भाव ही एक मात्र आधार है, क्योंकि प्रत्येक पदार्थ के अपने-अपने विशेष गुण हैं, जो उसके अलावा अन्य द्रव्यों में नहीं पाये जाते। इसी आधार पर विश्व में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छह जाति के द्रव्य कहे गये हैं। अन्य विशेष प्रकार गुणों के अभाव में कोई सातवीं जाति का द्रव्य, विश्व में नहीं है। आत्मानुभूति में भाव का महत्त्व - मोक्षमार्ग का प्रारम्भ आत्मानुभूति से ही होता है, जिसका मूल आधार भेद - विज्ञान है। जड़ और चेतन को भिन्न-भिन्न जानना ही भेद - विज्ञान है तथा जड़ और - चेतन 'भाव' वाची शब्द हैं, द्रव्य-क्षेत्र - कालवाची नहीं। पदार्थों को उनके 'भाव' की मुख्यता से ही जड़ या चेतन कहा जाता है। कहा भी है - जड़भावे जड़ परिणमे, चेतन-चेतनभाव । कोई कोई पलटे नहीं छोड़ी आप स्वभाव ।। ग्रन्थाधिराज समयसार की पाँचवीं गाथा में एकत्व - विभक्त आत्मा का स्वरूप दिखाने की प्रतिज्ञा करने के तत्काल बाद छठवीं गाथा में आचार्यदेव ने आत्मा को प्रमत्त- अप्रमत्त से रहित, एक ज्ञायकभावरूप कहा है। इससे स्पष्ट है कि ज्ञायकभाव के रूप में जीव का अनुभव करना ही आत्मानुभूति है, मात्र सत् द्रव्य, बहुप्रदेश या अनादि-अनन्त काल के रूप में नहीं। यह बात अलग है कि वह ज्ञायकभाव स्वतः सिद्ध,
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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