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द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय
219 उक्त तालिका के आधार पर निम्न प्रकार से स्वचतुष्टय में प्रमाणनय के प्रयोग समझना चाहिए - प्रमाण का विषयभूत प्रत्येक पदार्थ -
स्वद्रव्य की अपेक्षा सामान्य-विशेषात्मक है। स्वक्षेत्र की अपेक्षा भेदाभेदात्मक है। स्वकाल की अपेक्षा नित्यानित्यात्मक है।
स्वभाव की अपेक्षा एकानेकात्मक है। द्रव्यार्थिकनय से प्रत्येक पदार्थ -
स्वद्रव्य की अपेक्षा सामान्यरूप है। स्वक्षेत्र की अपेक्षा अभेदरूप है। स्वकाल की अपेक्षा नित्यरूप है।
स्वभाव की अपेक्षा एकरूप है। पर्यायार्थिकनय से प्रत्येक पदार्थ - . . .स्वद्रव्य की अपेक्षा विशेषरूप है।
स्वक्षेत्र की अपेक्षा भेदरूप है। स्वकाल की अपेक्षा अनित्यरूप है। स्वभाव की अपेक्षा अनेकरूप है।
वस्तु का द्रव्यांश - सामान्य, अभेद, नित्य और एक होने पर भी उन्हें जाननेवाले ज्ञान को द्रव्य की मुख्यता से द्रव्यार्थिकनय कहा गया है, सामान्यार्थिक नित्यार्थिक आदि नहीं अर्थात् यहाँ, सामान्य, अभेद, नित्य और एक विशेषणों को 'द्रव्य' शब्द में गर्भित करते हुए द्रव्य की मुख्यता करना चाहते हैं। इसीप्रकार वस्तु के विशेष, भेद, अनित्य और