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________________ 12 द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय मूलनयों के प्रकरण में अध्यात्म शैली में प्रयुक्त निश्चय-व्यवहार नयों के साथ-साथ द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयों को भी मूलनय कहा गया है। निश्चय - व्यवहार तथा आगम-अध्यात्म की यथायोग्य विस्तृत चर्चा के पश्चात् अब यहाँ आगम शैली में प्रयुक्त द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकयों की चर्चा की जा रही है। जड़-चेतन प्रत्येक पदार्थ, द्रव्य-पर्यायरूप अथवा सामान्य- विशेष स्वरूप है। सामान्य/द्रव्य अंश को जाननेवाला ज्ञान, द्रव्यार्थिकनय तथा विशेष / पर्याय अंश को जाननेवाला ज्ञान, पर्यायार्थिक नय कहलाता है। द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र में उक्त दोनों नयों की परिभाषा इसप्रकार दी गई है पर्याय को गौण करके जो द्रव्य को ग्रहण करता है, वह द्रव्यार्थिकनय है और इससे विपरीत अर्थात् द्रव्य को गौण करके जो पर्याय को ग्रहण करता है, वह पर्यायार्थिकनय है। - यही आशय समयसार, गाथा 13 की आत्मख्याति टीका में इसप्रकार व्यक्त किया गया है - द्रव्य - पर्याय स्वरूप वस्तु में जो मुख्यरूप से द्रव्य का अनुभव कराए वह द्रव्यार्थिकनय है और जो ज्ञान, मुख्यरूप से पर्याय का अनुभव कराए, वह पर्यायार्थिकनय है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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