SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयों के सन्दर्भ में : आगम और अध्यात्म 215 नष्ट होता नहीं दिखता, जबकि उसमें पापार्जन के साथ सारा जीवन व्यर्थ जा रहा है और जिनवाणी के अभ्यास को तू समय नष्ट होना कहता है ? जरा विचार कर ! आगम और अध्यात्म सभी ग्रन्थ, क्षण-क्षण में. अन्तर्मुख होनेवाले वीतरागी सन्तों ने लिखे हैं। उनका समय लिखने में बर्बाद नहीं हुआ और तेरी परिणति इतनी अन्तर्मुख हो गई कि उनके अध्ययन में तुझे समय बर्बाद होता दिखता है। समय और बुद्धि की क्षमता के अनुसार स्वाध्याय में ग्रन्थों की प्राथमिकता होना अलग बात है, परन्तु जिनवाणी के अभ्यास में ऐसी अरुचि रखना, महा अनर्थ का कारण है; अतः गम्भीरता से विचार करके आत्महितकारी दृष्टि अपनाकर जिनागम का अभ्यास करना चाहिए। इस सन्दर्भ में परमभावप्रकाशक नयचक्र, पृष्ठ 181-183 पर किया गया स्पष्टीकरण पढ़कर, आगम और अध्यात्म का यथार्थ स्वरूप समझते हुए ओगम-पथ पर चलकर, अध्यात्म की मंजिल प्राप्त करने का प्रयत्न करना ही श्रेयस्कर है। अभ्यास-प्रश्न 1. आगम और अध्यात्म की विषय-वस्तु की समीक्षा कीजिए ? 2. असद्भूत एवं सद्भूतव्यवहारनय के आगमगत एवं अध्यात्मगत प्रयोगों की तुलना कीजिए । 3. आगम और अध्यात्म दोनों के अभ्यास की उपयोगिता प्रतिपादित कीजिए ।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy