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________________ 213 नयों के सन्दर्भ में : आगम और अध्यात्म रखा गया है तथा प्रत्येक नय का वजन (महिमा) आत्म-हित की मुख्यता से निश्चित किया गया है। उनकी भूतार्थता और अभूतार्थता का आधार भी आत्म-हित की दृष्टि को बनाया गया है। ... पंचाध्यायी में व्यवहारनय के तो चार भेद स्वीकार किये हैं, किन्तु उनकी विषय-वस्तु के सम्बन्ध में भिन्न अभिप्राय व्यक्त किया गया है । तथा निश्चयनय के भेद स्वीकार नहीं किये गये हैं। इन सबकी चर्चा विस्तार से की जा चुकी है। प्रश्न 5 - सद्भूत, असद्भूत तथा उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय को आगम-अध्यात्म दोनों शैलियों में लिया गया है तो इनमें क्या अन्तर है? उत्तर - आगम शैली में इन्हें उपनय के भेदों के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है तथा इनके स्वजातीय-विजातीय आदि भेद किये गये हैं। अध्यात्म शैली में ऐसे भेद न करके सद्भूत-असद्भूत, उपचरितअनुपचरित आदि चार भेद करके आत्मा के सन्दर्भ में इनका प्रयोग किया गया है। द्रव्य में द्रव्य का उपचार आदि नौ भेद भी आगम शैली में हैं, अध्यात्म शैली में नहीं। आगम का क्षेत्र विस्तृत है, अतः उसकी प्रकृति, विस्तार में जाने की है, इसलिए नयों के जैसे भेद-प्रभेद आगम शैली में हैं, वैसे अध्यात्म शैली में नहीं, क्योंकि वह मात्र आत्मा तक सीमित है। आगम फैलने की और अध्यात्म अपने में ही सिमटने की प्रक्रिया का नाम है। प्रश्न 6 - क्या अध्यात्म ग्रन्थों में आमम के नयों का प्रयोग होता है? .. उत्तर - ग्रन्थों में आगम या अध्यात्म शैली की मुख्यता या
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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